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अचौर्य सम्मत ही क्यों न करार दिया जाए । यह एक संतोषजनक बात है कि भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोर लोगों को कई बार दण्ड भी दिया जाता है परन्तु यदि मानव समाज के चोरी के इन समस्त रूपों को समझ कर उन में इन कर्मों के त्याग की भावना उत्पन्न की जाए तो अनायास ही देश तथा समाज से ऐसे पाप दूर हो सकते हैं।
परकीय वस्तु का ग्रहण तो दूर, उन का स्पर्श भी तर्जनीय माना जाना चाहिए। भारत वर्ष में मार्ग में प्राप्त किसी वस्तु को यदि पुलिस स्टेशन पहंचा दिया जाए तो इसी को ईमानदारी कहा जाता है परन्तु पश्चिम के एक देश में एक विचित्र घटना घटी थी।
एक भारतीय ने एक बैग पड़ा देखा। भारतीय संस्कारों के अनुसार उस ने बैग पुलिस स्टेशन पहुंचा दिया . बैग के गुम हो जाने के बाद बैग का मालिक भी पुलिस स्टेशन रिपोर्ट लिखवाने गया । तो पुलिस ने उसे कहा, "देखो ! यही तो तुम्हार। बैग नहीं है ? स्वीकृति पा कर पुलिस वाला बोला, इस व्यक्ति को तुम्हारा बैग मिला है । उसने इसे यहाँ पहुंचाया है अतः इसे कुछ इनाम दो।"
सेठ ने बैग के रुपयों को गिनती की तथा कहा, ईनाम ! इस व्यक्ति को तो दंड देना चाहिए क्योंकि इस ने मेरे बैग को स्पर्श करने का अपराध किया है। जब यह बैग उस का नहीं था तो परकीय वस्तु को उस ने हाथ क्यों लगाया जिस का वह बैग होता वह अवश्य ही स्मृति के अनुसार वहां पहुंच कर अपना बैग ले जाता । सेठ का तर्क था।
लिखने का तात्पर्य है कि भगवान् महावीर का यह सिद्धांत अद्वितीय है। किसी की वस्तु को स्पर्श करने मात्र से ही व्यक्ति
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