________________
योग शास्त्र
[२२७
है । वह बहुत बड़े-बड़े कष्ट झेलता है। खून-पसीना एक करता है । प्राणों तक का बलिदान देने को तैयार रहता है फिर भी यदि वह किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा लूट लिया जाता है तो उसे क्यों न दुःख होगा ? प्राण रक्षा के लिए भी धन का उपयोग न करने वाले लोग इस विश्व में मिल जाएंगे । परन्तु धनरक्षा के लिए प्राणों की बाजी न लगाने वाले लोग बहुत कम मिलेंगे ।
धन मानव की बहुत बड़ी कमजोरी है । यही कमजोरी व्यक्ति से चोरी कराती है । योग शास्त्रकार कहते हैं कि दोनों से मुक्ति पाने के लिए अचौर्य व्रत आवश्यक है । धर्म के नाम पर ठगी करने वाले लोग भी इस दुनियां में हैं । कोई महात्मा बनकर कोई धर्मात्मा बनकर, कोई पुजारी बन कर या भक्त बन कर जनता की वंचना करता है ।
यदि कोई साधु वेषधारी वंचक आप को यह कहे कि वह एक अंगूठी की चार अंगूठी बना सकता है । तो आप उसे सोने की अंगूठी देंगे या नहीं ? अवश्य देंगे । यहीं पर आप का लोभ आप की वंचना करा देता है । तब वह व्यक्ति चार गुणा देने के विपरीत वह माल लेकर नकली माल आप को थमा देगा या वह अंगूठी लेकर भाग जाएगा और लोभी मार्गदर्शी बन कर उस के लौटने की प्रतीक्षा करता बैठा रहेगा। जहां लोभी होते हैं, वहाँ ठग भी होते हैं । कतिधा धर्मस्थानों पर भी चोरियां होती हैं । मुख्यतः जूतों की चोरी। कई लोग यहाँ जते चुराने ही आते हैं । तथा अवसर का लाभ उठा लेते हैं । बताइये, जहां जूतों की चोरी होती है वहां भक्त उपदेश सुनने जाएगा ? धर्मस्थान पर भी पाप के कर्म ? कैसी दूषित मनोवृत्ति ।
+
कई लोग भीड़ में जेब काटने में दक्ष होते हैं । मन्दिरों में प्रायः भीड़ तो होती है । अतः वे भक्त बन कर आते हैं और जेब काट कर चले जाते हैं ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org