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________________ २२६] अचौर्य हआ। वहाँ पर उस ने चोरी करने से पहले या बाद में किसी सुन्दर स्त्री को देख लिया । यदि वह एकाकी हो तो चोर का मन उस के प्रति आसक्त हो सकता है । बंकचल के सन्म ख एवंविध प्रसंग उपस्थित हो गया था, परन्तु वह तो नियम के कारण पतित न हुआ। अन्यथा वहाँ पतित करने के लिए रानी स्वयं सम्मुख से प्रार्थना कर रही थी। * यदि चोर पकड़ा जाए तो उस की मृत्यु तक हो सकती है। ललितांग कुमार रानी के अन्तःपुर में गया था परन्तु रानी ने उसे गंदे कूप (गटर) में डाल दिया था। चोर का परिग्रह से क्या सम्बन्ध ! न्यायनीति से धन कमाने वाला तो अपरिग्रही हो सकता है । परन्तु अनीति से धन संग्रह करने वाला लोभी ही होगा। अपरिग्रही नहीं हो सकता। क्या वह परिग़ह की मर्यादा कर पाएगा? . इस प्रकार चोरी से पांचों व्रतों में दूषण तथा अतिचार लगते हैं। चोर अपने कर्तव्य से भी अपरिचित होता है । चोरी चोर का साध्य होता है । चोरी करने के लिए यदि हिंसादि भी करनी पड़े तो हिंसा भी वह करेगा। तब वह विस्मृत कर देगा कि वह चोरी करने आया है, किसी को मारने नहीं। धन आज के मानव का ११ वां प्राण है। जैसे १० प्राण में से एक भी प्राण न हो तो पंचेन्द्रिय प्राणी जीवित नहीं रह सकता। वैसे ही धन भी एक प्राण के ही समान है । यदि धन न हो तो प्राणी जीवित नहीं रह सकता तथा धन के हरण से कई व्यक्तियों को हार्ट अटैक तथा हार्ट फेल होते हुए भी देखा गया है । अतः इस का मूल्य भी प्राण से कम नहीं है । व्यक्ति प्राणों से भी अधिक प्रेम धन से करता है। वह धन के लिए समुद्र पार करता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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