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________________ योग शास्त्र [२२५ ___ चोर के मन में भय होता है । वह छोटा हो या बड़ा हो, उस के मन में भय अवश्य होता है। जहां भय है, वहां धर्म नहीं हो सकता। जहां हिंसा या असत्य है, वहां भी धर्म नहीं हो सकता चोरी करने वाला इसी भय से ग्रस्त रहता है कि मुझे कोई देख न ले। वह चोरी करके भाग जाना चाहता है। जिस से कि उस की चोरी पकड़ी न जाए। चोरी के साथ प्रायः माया का सम्बन्ध होता है । जो चोरी करेगा। वह न पकड़े जाने पर माया कपट से उसे छुपायेगा । यदि कोई तलाशी लेने आएगा तो छुपाई वस्तु को पकड़े जाने का भय भी बना रहेगा। चोरी करने वाले को समय-समय पर पांच व्रतो के खंडन का दोष लगेगा। वह पकड़े जाने पर असत्य भी बोलेगा। चोर स्वयं कहेगा कि मैंने चोरी नहीं की। इतना ही नहीं, चोरी करने वाले की दृष्टि ही गिद्ध-दृष्टि बन जाती है । वह यत्र-तत्र इसी दृष्टि से ही देखता रहता है कि कहीं से कुछ मिल जाए । जहां कहीं ताला लगा होगा। वहाँ वह ताला तोडने का विचार यदि न भी करे तो खुली वस्तु को उठाने की वृत्ति उस की अवश्य बनी रहेगी। चोरी करने वाले को घर में या मार्ग में कहीं पर कोई ललकार दे तो वह युद्ध भी करेगा। इस प्रकार वहां हिंसा होने की पूरी सम्भावना होती हैं । चोरों के पास प्रायः शस्त्र होते ही हैं। बैंक या घर को लूटने वाले प्रथम पहरेदार को ही तीक्ष्ण छुरी या गोली से मार देते हैं या घायल कर देते हैं। कुत्ते को विषमय वस्त खिला देते हैं तथा कभी-कभी दृढ़ प्रहारी की तरह बाल-वध स्त्री-बध, गो-बध तथा ब्राह्मण बध या साधु बध भी कर देते हैं । चिलाति पुत्र को भी चोरी के कारण ही सुसीमा की हत्या करनी पड़ी थी। - चोरी करने से कभी ब्रह्मचर्य के खंडन का प्रसंग भी आ सकता है । मान लिया कि एक चोर किसी परकीय घर में प्रविष्ट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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