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________________ २२४] अचौर्य शास्त्रकारों के अनुसार प्रत्येक त्रिविध - त्रिविध प्रकार से होता है । करना, कराना अनुमोदना तथा मन से, वचन से एवं काया से । चोरी करने वाला मन से भी चोरी कर सकता । यदि मन में यह विचार मात्र भी आ गया कि मैं चोरी कर लूं तो पाप का बन्धन हो जाता है । यदि वचन से यह कह दिया कि यह वस्तु उठा लेनी चाहिए तो वह वचन से चोरी है । अदत्त ग्रहण है । प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परकीय वस्तु को चुरा कर ले जाना काया से चोरो है । आज समाज में बहुत हेराफेरी चल रही है । केवल व्यापार की बात नहीं है । मानव के प्रत्येक कर्म में हेराफेरी है । अनैतिकता है। यदि आप तोलने में कपट करते हैं तो वह भी एक प्रकार की चोरी है । अचौर्य व्रतधारी ही समझ सकता है कि अदत्त के अग्रहण से क्या लाभ हो सकता है ? चोरी करने से दूसरे की आत्मा को दुःख होता है । चोरी तो हिंसा से भी बदतर है । 1 चोरी करने से हिंसा करने की अपेक्षा अधिक पापोपार्जन होता है । क्योंकि हिंसा करने वाला तो जान से मारता है किन्तु धन हरण करने वाला एक प्रकार से सारे परिवार को ही दुःखी करता है । धनाभाव में उन का जीवनयापन कठिन हो जाता है । वह समस्त परिवार जीवित होने पर भी मृत के समान हो जाता है । परिवार का मुख्य व्यक्ति जब परिवार को भोजन नहीं दे पाएगा तथा सफेद पोशी एवं सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण वह याचना भी नहीं कर पाएगा तो उस का जीवन ही नष्ट हो जाएगा । वह स्वयं भी क्षुधित होकर मरेगा तथा अन्यों को भी मृत्यु के अभिशाप से नहीं बचा सकेगा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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