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योग शास्त्र
२१३ वह मर्गे को मारे बिना ही वापिस लौटा । उपाध्याय समझ चुके थे कि यही एक नारद है, जो स्वर्ग में जाएगा।
कालांतर से वसु राजा बना। उस के सत्य के प्रभाव से उस का सिंहासन धरती से सदैव ऊपर रहता था।
एक बार पर्वत तथा नारद में कलह हुआ। नारद ने कहा कि गरु जी ने अज' का अर्थ तीन वर्ष पुराना धान्य किया है। जब कि पर्वत कह रहा था कि 'अज' का अर्थ बकरा है ।
दोनों ने यह प्रतिज्ञा की कि वसु राजा के पास जा कर यह बात पूछेगे तथा जो असत्यवादी होगा वह अपनी जीभ काट लेगा।
गुरुपत्नी को पता लगा कि मेरे बेटे ने यह शर्त (प्रतिज्ञा) की है तो वह कल्पांत रुदन करने लगी क्योंकि वह जानती थी कि पर्वत इस विवाद में हार जाएगा। - वह सीधे वसु राजा के पास पहुंची तथा पर्वत की प्राण रक्षा के लिए करवद्ध प्रार्थना की। वसु ने स्पष्ट कहा कि गरु जी ने जो अर्थ बताया था मैं उस का अन्य अर्थ नहीं कर सकता ।
परन्तु अन्ततः गुरुमाता पर वसु को दया आ गई तथा उस ने राज्य सभा में पर्वत के पक्ष में मत दिया। इस असत्य के प्रकट होते ही सत्य के अधिष्ठायक देवों ने सिंहासन को नीचे पटक दिया। वसु वहीं रक्त का वमन करता हुआ मृत्यु को प्राप्त करके नरक में गया।
असत्य का दामन पकड़ने वालों का कभी न कभी यही हाल होता है।
"सत्यमेव जयते हि नानृतम् ।" सदैव सत्य की ही विजय होती है, असत्य की नहीं। आज भी विश्वयुद्ध की विभीषिका से इसी लिए बचा हुआ है क्योंकि सभी देश परमाणु बम से होने वाले विनाश को कल्पना नहीं,
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