________________
२१२]
सत्य खटखटाया। बच्चा बाहर आया। आगंतुक व्यापारी ने पूछा, बेटा ! "तेरे पिता जी क्या घर हैं ?" बेटा अन्दर गया तथा पिता जी को सारा वृत्तांत सुनाया। पिता जी बोले, "जा बेटा ! कह दे कि पिता जी घर पर नहीं हैं ।" बेटा उस के पास जा कर बोला-"चाचा ! पिता जी कह रहे हैं कि पिता जी घर पर नहीं हैं।"
__ इन कार्यों से समाज को सत्य बनाया जा रहा है। छोटे से लाभ के लिए अपना धर्म बेच देना किस धर्म-ग्रंथ में लिखा है ?
"ऋतस्य पंथाः दुर्गमाः दुरत्ययाः" सत्य का पथ दुर्गम होता है, उस पर चलना बहुत कठिन होता है । किसी भी स्थिति में सत्य का दामन छोड़ना नहीं चाहिए।
वसु राजा की दुर्गति असत्य से ही तो हुई थी। वसु, नारद तथा पर्वत तीनों मित्र थे तथा एक उपाध्याय से अध्ययन किया करते थे। वसु, राजा का पुत्र था। नारद ब्राह्मण-पुत्र था । पर्वत उपाध्याय का ही पुत्र था। उपाध्याय ने एक बार रात को देखा कि आकाश में रात को कहीं जा रहे २-३ चारण मुनि परस्पर वार्तालाप कर रहे थे तथा कह रहे थे कि इन तीन विद्यार्थियों में से २ नरक में तथा एक स्वर्ग में जाएगा । उपाध्याय ने विचार किया कि परीक्षा करके यह पता लगाना चाहिए कि कौन से दो विद्यार्थी नरकगामी हैं।
उस ने तीनों विद्यार्थियों को आटे का एक-एक मुर्गा दिया तथा उस से कहा कि इस को वहां काट कर आओ, जहां पर कोई भी न देखता हो । पर्वत तथा वस् ने जंगल में जा कर मुर्गे को मार दिया। जब कि नारद ने जंगलों तथा पर्वतों में जा कर यह सोचा कि यहां परमात्मा भी देख रहा है तथा मैं भी तो देख रहा हं, अतः इस आटे के मुर्गे को कैसे मार जा सकता है।
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org