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योग शास्त्र कहने को तैयार न था, कि मैंने अन्दर जूता देखा है।
जनश्रुति से यह समाचार राजा को भी मिले । राजा के मन में भी भगवान के दर्शन करने की इच्छा जागत हई। क्रमशः राजा भी योगिनी के पास आ पहंचा । योगिनी ने उसी क्रम से राजा को कक्ष में भेजा। परन्तु यह क्या ? वहां तो जूता ही दिखाई दे रहा था। राजा आश्चर्य चकित हुआ। परन्तु जहां समस्तनगर जनों में यही प्रवाद चल रहा था कि मैंने भगवान के दर्शन किये हैं तो राजा कैसे कह सकता था कि मझे वहां भगवान नहीं दिखे।
राजा के कक्ष से बाहर आने पर योगिनी ने राजा के मुख पर निराशा की रेखाएं देख कर राजा के मन की बात को जान लिया।
३० वां दिन आने पर वह योगिनो राज्य सभा में पहुंची, राजा ने उसे नमस्कार किया । क्रम से योगिनो ने राजा को अपना वेश्या का रूप दिखाया। राजा बोला-"अरे ! यह सब क्या झूठा वेष पहन रखा था ? तेरे कथन के अनुसार एक मास हो चुका है । अब तुझे यह सिद्ध करना चाहिए कि जमाना झूठ का
वेश्या बोली-“महाराज ! क्या अब भी इस बात पर विश्वास नहीं होता । सच-सच बताइये कि आप को कक्ष में प्रवेश करने पर क्या दिखा था। भगवान या जता" ? राजा बोल उठा कि, “मुझे दिखा तो जूता ही था । परन्तु प्रतिष्ठा के भय से मैंने यह नहीं कहा । क्योंकि सभी लोग तो कह रहे थे कि अन्दर 'भगवान् के दर्शन हए हैं।" वेश्या बोली, कि “महाराजा, जैसे आप
को वहां जूते के दर्शन हुए वैसे ही वहां सभी को जूते के ही दर्शन हुए । भगवान् के दर्शन करना इतना सरल नहीं है । इस बात का
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