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सत्य
अंत में राजा ने राजपर्षद में एक वेश्या से पूछा तो वेश्या बोली, "महाराज ! आज कल तो झूठ का जमाना है । राजा ने इस बात को भी नहीं माना । वेश्या ने कहा कि "राजन् ! मैं आप को एक मास में यह प्रत्यक्ष दिखा दूंगी कि जमाना झूठ का है या नहीं ?”
वह वेश्या तीर्थ यात्रा के लिये चल पड़ी तथा एक मास के बाद एक योगिनी का वेश बना कर उसी नगर में आई । सारा नगर उस योगिनी के दर्शनों को उमड़ पड़ा । योगिनी ने एक बंद कमरे में एक मंच बना कर उस पर एक जूता रखा हुआ था । वह आने वाले सभी व्यक्तियों को कहती कि क्या आप को भगवान् के दर्शन करने हैं ? प्रत्येक व्यक्ति हां में उत्तर देता । वह पुन: कहती कि, "मैंने इस कमरे में भगवान् को बुलाया है । लेकिन वह दिखेगा उसे ही, जो अपने असली बाप का बेटा होगा । जो असली बाप का बेटा नहीं होगा, उसे वहां पर जूता पड़ा ही दिखाई देगा ।"
हजारों लोग पंक्तियों में लग गए तथा क्रमशः कक्ष में प्रवेश करके भगवान् के दर्शन करके पावन होने लगे। वहां तो योगिनी के अनुसार भगवान् बैठे ही थे । परन्तु कोई अपने असली बाप का बेटा हो तो ही, किसी को वहां भगवान् दिखाई दें। वहां जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को वहां जूता ही दिखाई दिया । परन्तु वह सोचने लगा कि यदि मैं किसी को यह कह दूं कि मुझे जूता दिख रहा है तो लोग मेरी ओर शंका की दृष्टि से देखेंगे | मुझे दूसरे बाप का बेटा मानेगे । मेरा उपहास उड़ाएंगे ।"
जब भी कोई व्यक्ति कक्ष से बाहर आता तो उसे पूछा जाता कि भगवान् के दर्शन हुए ? तो वह सन्तोष पूर्वक उत्तर देता "हां, हुए" यह गडरिया प्रवाह बच्चों से बूढ़ों तक चला । कोई भी अपनी एतिष्ठा को धूल में मिल जाने के भय से यह
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