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________________ योग शास्त्र (२०५ कीजिए।" "छ: रुपये ।" थोड़े समय में तो दुकानदार चार रु० के १० रुपये मांग रहा था । भारतीय बोला, "हमारे साथ इतनी बेईमानी करते हो ?"अरे ! बेईमान तो तुम हो, जो चार रुपये की वस्तु के पूरे पैसे भी देना नहीं चाहते हो ।” दुकानदार का उत्तर था। "लेकिन ! तुमने हर बार रेट बढ़ा कर क्यों बताए ?" _ "मेरे पास तुम भारतीयों की तरह समय बर्बाद करने के लिए नहीं है । रेट बार-बार पूछ कर यदि कोई समय बर्बाद करता है तो उस समय की कीमत उसो वस्तु में लगा दी जाती है। बेचारा भारतीय चुप था। यदि भारत में भी सभी दुकानों पर एक रेट हो जाए तो समय की कितनी बचत हो जाए। एक ग्राहक ५० रुपये की वस्तु १० रुपये में ले जाएगा तो कभी वापिस उस दुकान पर न आएगा । बताओ! घाटे में कौन रहा ? Rate Fix हो तो ग्राहक बढ़ते ही हैं, घटते नहीं। हां! विश्वास सम्पादन में समय अवश्य लगता है । - भारत वर्ष की जनता ने ऋषि महर्षियों की वाणी को विस्मृत कर दिया तो महर्षि कहते थे, "तं सच्चं भयवं" सत्य ही भगवान् है । परन्तु सत्य मैं भगवान का दर्शन किसी को नहीं होता। किसी की बुद्धि भ्रष्ट हो तो उसके सत्य का क्या दोष है ? वर्तमान में तो असत्य में ही लोगों को भगवान का दर्शन होता है। एक राजा था। वह राज्य सभा में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पूछा करता था कि आज कल किस वस्तु का जमाना ____ सभी मंत्री पृथक् पृथक् उत्तर देते । कोई कहता 'हेराफरी' का जमाना है। कोई कहता 'सत्य का जमाना है' कोई कहता कि 'अहिंसा का युग है' तो कोई कहता कि 'ज्ञान का युग है' । परन्तु राजा को किसी के उत्तर से संतोष न हुआ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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