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सत्य अब कपट करने से भी काम चलने वाला नहीं था। वह बोल उठा-"मैं चोर हूं" घर वालों ने उसे ईनाम दिया. तथा सत्कार पूर्वक आगे से भी घर में आने के लिए निमन्त्रण दिया। क्या सत्य का ही प्रताप न था । सत्य कहने में हिचकचाहट तो होती है परन्तु इस का फल सदैव मीठा होता है। पुत्र गलती करे तथा पिता उस से पूछे, तो पुत्र सब कुछ सत्य कह दे तो पिता उस बच्चों को कुछ भी न कहेगा । यदि बालक ने वहां झठ बोल दिया तथा उस का झूठ सफल हो गया तो वह असत्यवादी बन कर आगे भी लोगों को ठगना शुरू कर देगा।
एक मात्र सत्य ही कितने ही गुणों को लाता है । गुरु नानक ने एक चोर को नियम दिया कि वह आगे चोरी तो भले करे, परन्तु पूछने पर वह सत्य बता देगा कि उसने चोरी की है । २-४ दिन बाद ही वह चोर गुरु नानक के पास गया तथा बोला गरु जी ! अब तो चोरी ही नहीं हो रही। गुरु नानक ने पूछा कि मैंने तो तुझे चोरी न करने का नियम नहीं दिया था। चोर बोला, "मैं चोरी करके जा रहा था कि लोगों ने सन्देह से पूछ लिया कि तुम कौन हो ? मैंने कहा कि मैं चोर हूं। लोगों ने मुझे मारना प्रारम्भ कर दिया। अब तो चोरी करना कठिन हो गया है ।
सत्य बोलने वाले को व्यापार तथा समाज में प्रारम्भ में कठिनता का सामना करना पड़ता है। परन्तु उस का विश्वास जम जाता है तो सब से अधिक लाभ भी वही उठाता है।" ___ भारत में दुकानों पर एक Rate कम ही देखे गये हैं। बड़े शहरों में तो कृत्रिम माल का अतिरिक्त मूल्य भी २-४ गुणा मांगा जाता है। परन्तु यूरोप में एक भारतीय ने एक वस्तु खरीदी। दाम पूछने पर उस ने कहा 'चार रुपये।' भारतीय तुरन्त अपनी पुरानी आदत के अनुसार बोला 'कुछ तो कम करो मूल्य'...... वह बोला-"पांच रुपये" भारतीय ग्राहक बोला “चार से कम
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