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________________ योग शास्त्र [२०३ ठगी तथा बेइमानी एवं रिश्वत ने चारों तरफ डेरा डाल रखा है । कहीं जासूसी है, तो कहीं नेताओं की हत्या, कहीं धोखा है तो कहीं बनावटी बातें | परिवार के सदस्यों का प्रेम बनावटी है। मित्रों की दोस्ती जिस पर संसार का वैभव न्यौछावर हो जाता था, वह भी स्वार्थ के कारण बनावटी हो गई है परन्तु इस बनावट कभी चल ही जाता है । का पता कभी न सच्चाई छिप नहीं सकती, बनावट के असूलों से । कि खुशबू आ नहीं सकती, कभी कागज के फूलों से ॥ असत्य, कपट, झूठ कभी न कभी फूट पड़ते हैं । जब कोई भी असत्य पकड़ा जाता है तो मानव घबराता हैं । परन्तु असत्य आचरण के लिए दोषी वह स्वयं ही होता है कोई अन्य नहीं । I इस युग में वफादारियां भी बदल रही हैं । न जाने कितने जय सिंह एवं माधव सिंह हमारे देश में हो गये हैं । अभी भी उन के वंशजों के प्रकोप से भारत का छुटकारा नहीं हुआ है। देश-देश में न जाने कितने विद्रोह हो चुके हैं । इस असत्य बेइमानी, हेराफेरी को व्यापार, समाज, तथा देश में से नेस्तनाबूद करने की आवश्यकता है । कई बार तो सच के प्रमाण ही समाप्त कर दिए जाते हैं। झूठ को प्रमाणित किया जाता है, परन्तु सच सदैव दीवार पर चढ़ कर बोलता है। दीवारें ही ऐसे असत्यों को सुनदेख कर जनता तक पहुंचा देती हैं । जहां असत्य होता है, वहाँ माया भी होती है । माया के झूठ • टिक नहीं सकता । झूठ बोलने वाला यदि माया न करे तो उस का झूठ समाप्त हो जाएगा । बिना 1 एक चोर चोरी करने गया । घर वालों ने उस को देख लिया तथा पकड़ लिया । उस से पूछा गया, कि तू कौन है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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