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________________ योग शास्त्र [१६६ ___गरीब या दुःखी की आह (दुराशीष) आसमान को भी हिला सकती है अतः किसी को दुःख नहीं देना चाहिए । एक लेखक ने कहा था Nothing good comes, out of violence. हिंसा से कभी कुछ भी अच्छा फल नहीं होता। अष्ट प्रवचन माता में भी मुख्यतया अहिंसा का ही पालन है। पांच में से ४ समितियाँ (ईर्या समिति, एषणा समिति, आदानभंड, निक्षेपणा, पारिष्ठापनिका) तथा एक एक गुप्ति (कायगुप्ति) तो काया से होने वाली हिंसादि को रोकने के लिए है। भाषासमिति तथा वचन गुप्ति' वचन से होने वाली, हिंसा को रोकने के लिए है तथा मनोगुप्ति मने की हिंसा को रोकने के लिए है। ___ इस प्रकार अहिंसा का क्षेत्र बहुत व्यापक है । मात्र बड़े-बड़े कार्यों में अथवा धार्मिक कार्यों में ही अहिंसा का पालन नहीं करना चाहिए, अपितु प्रत्येक छोटे बड़े सांसारिक कार्यों में भी यतना से काम करना चाहिए । 'जयणा धम्मस्स जणणी' यतना (विवेक) धर्म को माता है। यदि मानव जीवन अहिंसायुक्त बन जाए तो जीवन में पाप का बंध अल्प हो जाए । यदि समाज में अहिंसा का वातावरण बदला जाए तो शाब्दिक हिसा भी दूर हो जाए तथा विश्व में यदि अहिंसा का महत्त्व समझा जाए तो विश्व में हिंसा आदि से उत्पन्न हो रहे विनाश तथा जनरोष को रोकने में सहायता मिल सकती है। ___तात्पर्य है कि स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेंद्रिय, चक्षुरिंद्रिय, श्रोत्रेन्द्रिय, मनोबल, वचन बल, काया बल, श्वास तथा आयइन १० प्राणों में से जिस प्राणी के जो प्राण होते हैं, उन प्राणों का नाश करने से प्राणी दुःख का अनुभव करता है अतः प्राणों का नाश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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