________________
[१९७
अहिंसा (पान आदि) का भक्षण करने लग गया तो? ____६. सचित्त जल की नदी को क्या वह बारंबार पार न करेगा ?
१०. सचित्त पृथ्वी तथा सचित्त घास उसके लिए अप्रयोज्य क्यों रह जाएगा?
११. रात्रि के कंवली के काल का फिर क्या होगा? सचित्त जल का सेवन करने वाला रात्रि में पड़ने वाली ओस से क्यों पाप मानेगा?
१२. इस प्रकार साधुत्व की आधारशिला अहिंसा ही डगमगा जाएगी।
१३. सब से मुख्य बात यह कि जो साधु एक बार पानी के गर्म हो जाने के कारण (यदि आधाकर्मी स्वनिमित्त से गर्म किया हुआ पानी ले तो) एक बार ही जीवघात का दोषी होता है । परन्तु वही साधु जब कच्चे पानी को घड़े में भर के रखेगा तो (क्योंकि वह सचित्त जल उस ने अपने लिए रखा है इस लिए) सारा दिन उस कच्चे जल में होने वाली जीवोत्पत्ति का तथा जीव विनाश का कारण उसे बनना पड़ेगा।
१४. इतना ही नहीं बार-बार उस कच्चे पानी को या उस घड़े को हाथ लगाने या हिलाने से या पानी लेने के लिए घडे के जल के हिलने से जो बारंबार जीव हिंसा होगी-उस हिंसा का दोष क्यों साधु को न लगेगा ?
इस प्रकार साधु धर्म ही शंकास्पद हो जाएगा । भगवान् महावीर ने साधु के लिए अहिंसा तथा ब्रह्मचर्य-ये दो ,महाव्रतों
को अत्यन्त प्रधानता दी है क्योंकि इन दो महाव्रतों का पालन • करने के बाद अन्य महाव्रतों का पालन सुकर हो जाता है । उन में भी ब्रह्मचर्य व्रत को मुख्यतः अहिंसा व्रत के पालन के लिए भी आवश्यक समझाया गया है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
- www.jainelibrary.org