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योग शास्त्र में लाना प्रारम्भ कर दे तो पानी अधिक उपयोग में आएगा, परिणामतः साधु जहां सुविधावादी बनेगा, वहां प्रासुक जल में होने वाली हिंसा से अधिक जल इस्तेमाल करके अधिक पाप का भागी बनेगा।
२. साधु यदि जल प्राप्त करने के लिए नल को खोलेगा या कुएं में से भी कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर पानो. निकालेगा तो निकलने वाले पानी के साथ स्पर्श करने वाले अनेक मन पानी भी हिलेगा तथा इस प्रकार कितने अधिक जीवों की हिंसा का पाप उस साधु को लगेगा।
३. साध पानी को घड़े में भर कर रखेगा तो वह घड़ा कच्चे पानी का होने के कारण सतत तथा प्रतिदिन जल को उसी में भरेगा तो प्रासुक जल की भिन्न-भिन्न वस्तुओं में तीन चार या पांच प्रहर की व्यवस्था कैसे बन सकेगी ? चातुर्मास में (तीन प्रहर का विधान होने के कारण २ काल के पानी की व्यवस्था क्या न टूटेगी ?
४. जब सचित्त जल साधु लेना प्रारम्भ कर देगा तो सचित्त भोजन (फल आदि) लेने से उसे कौन रोक सकेगा?
५. सचित्त जल लेने वाला साधु बासी भोजन (जिसे सचित्त जल के मिश्रण के कारण अभक्ष्य कहा गया है) क्यों न लेगा?
६. यदि सचित्त जल का पान हो सकेगा तो वर्षा आदि में साधु को आहारादि लाते देख कर या विहार करते हुए देख रोकना कहां तक उचित होगा?
७. जलकाय के उपयोग की छूट मिल जाने के बाद अग्निकाय, वायुकाय आदि के उपयोग से उसे क्या रोका जा सकेगा ?
८ सचित्त का परिहारी साधु फिर सचित्त वनस्पति
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