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अहिंसा अधिकार है और साथ में दूसरों को भी जीने दो।" "Live & let live" स्वयं जीते जाओ और दूसरों को अपना अधिकार, प्राप्त करने दो । “जियो और जीने दो" यह सूत्र भी जीवन में पूर्णतया अपना लोगे तो अहिंसा व्रत साकार हो सकेगा।
वर्तमान में मानव ही मानव का शत्रु बन रहा है । मानव का परस्पर सामीप्य समाप्त हो रहा है, । परन्तु मानव ही मानवं से डर क्यों रहा है ? कारण स्पष्ट है कि मैत्री कम हो रही है । जब पारिवारिक सम्बन्धों में भी प्रेम-वात्सल्य की भावना कम हो रही है तो अपने पड़ोसियों से अथवा विश्व के प्रत्येक व्यक्ति से मैत्री सम्बन्ध कैसे स्थापित हो सकता है ? ,
___ श्वान श्वान का शत्रु होता है परन्तु वह किसी अपरिचित श्वान की भौंकता है, परिचित को नहीं । जब कि मानव तो परिचित को ही अधिक भौंकता है । भागीदार को ही धोखा देता है। भाई से ही स्वार्थ पूर्ण व्यवहार करता है। माता पिता तथा बुजर्गों को भी स्वार्थ के ही दृष्टिकोण से देखता है ।
बहुत से लोग-जो विश्व मैत्री की बातें करते हैं, अपने परिवार को भी सन्तुष्ट नहीं कर पाते । स्पष्ट है कि वे विश्वमैत्री का मुखौटा पहन लेते हैं परन्तु उन के अन्तर्मन से उत्पीड़न का हालाहल विष भरा होता है । हृदयवर्ती यह विषकुंभ अन्ततः उन्हें ही नष्ट कर देता है।
अहिंसा की विचार धारा मानव के प्रति प्रेम सिखाती है । जब भी किसी को 'पराया' समझ लिया जाए तब ही विद्रोह, विद्वेष, अशांति की सम्भावनाएं आविर्भूत हो जाती हैं।
यदि मानव, मानव के साथ मैत्री का हाथ बढ़ाए तो अहिंसा का फल जीवन में मिल सकता है। फिर मानव ही प्रिय नहीं रहेगा, मानवता ही प्रिय हो सकेगी। मानवता प्रेमी युद्ध की बातें न करेगा, क्लेश की बात भी न सोचेगा। अनावश्यक लाखों लोगों
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