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________________ योग शास्त्र [१८६ मारोगे तो बड़ी हिंसा का पाप लगेगा । शास्त्रों में वनस्पति खा लेने से उतनी हिंसा नहीं बताई, जितनी एकमात्र विकसित प्राणी हाथी को मारने से होती है। अहिंसा की Defination बहुत विशाल है। अहिंसा के मार्ग पर चलते रहना। मांसाहार से बहुत दूर बच कर रहना । ऐसा मत सोचो कि कुछ धर्म ग्रंथों में मांसाहार की बात लिखी है। किसी भी धर्म में मांसाहार को खाना नहीं बताया गया । भले वो सिख धर्म हों, भले वो पारसी धर्म हो, भले वो बाईबल हो, भले वो जैन शास्त्र हो, भले वो कुरान हो, बौद्ध शास्त्र हों। कहीं भी यह लिखित वचन नहीं कि मांस खाना चाहिये । जब से बौद्ध धर्म के भिक्षुओं ने मांसाहार करना प्रारम्भ कर दिया तब से उन का भारत वर्ष से निष्कासन हो गया । चीन, जापान, थाईलेण्ड तथा बर्मा में उनके अनुयायियों में मांसाहार प्रचलित हो गया है। सिख समाज के आद्य धर्मगुरु गुरु नानक ने अपने धर्म ग्रन्थों में एक बहुत सुन्दर बात कही है। जे. रत लग्गे कपड़ा, जाम्मा होय पलित्त। जे रत पीये मानसा, · निर्मल कैसे चित्त ॥१॥ जब हमारे कपड़े में खून का धब्बा लग जाता है, तो हम कहते हैं कि हमारी कमीज खराब हो गई । यदि खून का एक ही धब्बा लगने से हमारी पोशाक गन्दी हो जाती है तो जो लोग खन वाला पशु पेट में डालते हैं और मांस का भक्षणं करते हैं, खून और मांस को खाते हैं, उन का शरीर क्या अपवित्र नहीं होता ? अरे ! शरीर भी अपवित्र होता है, मन भी अपवित्र होता है। अतः आज आवश्यकता है हिंसा और अहिंसा को समझने की। जो व्यक्ति अहिंसा को ठीक समझ जाता है जीवन में उत्थान कर लेता है। भगवान् महावीर ने कहा था, "जीयो! तुम्हें जीने का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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