________________
१७०]
ज्ञान तथा चारित्र चाहिएं। उदर पूर्ति के लिए न केवल भोजन का ज्ञान चाहिए अपितु भोजन करने के लिए हाथ हिलाने की क्रिया भी करनी ही होगी।
जैसे दीपक स्वपर को प्रकाशित करता है तदैव ज्ञान स्वपर को प्रकाशित करता हैं। यद्यपि जड़ क्रिया के द्वारा ऐसा होना सम्भव नहीं, परन्तु जब क्रिया ज्ञान युक्त हो कर अमत क्रिया बन जाती है तो वह स्वपर प्रकाशक भी बन जाती है। दीपक जड़ होता है परन्तु ज्योति से युक्त होने पर क्या वह स्वपर को प्रकाशित करने में मुख्य भूमिका नहीं निभाता.?
अज्ञानी की क्रिया को शास्त्रकारों ने मिथ्या क्रिया, जड़ क्रिया, शुष्क क्रिया तथा विष क्रिया के नामों से अभिहित किया है । निःसार, क्रियावादी क्रिया में ही इतना उलझ जाते हैं कि 'ज्ञान' के प्रति उन का दुर्लक्ष्य हो जाता है । तामलि तापस ने अज्ञान तप करके क्या प्राप्त किया ?
जिस तप से मोक्ष प्राप्त हो सकता था, उस से वह मात्र देवलोक ही प्राप्त कर सका क्योंकि ज्ञान शक्ति का वहां अभाव था। अतः क्रिया के साथ अर्थ का चिंतन भी होना चाहिए। मात्र तोते की तरह राम-राम की रटन ही नहीं होनी चाहिएं।
प्रतिक्रमण के सूत्रों को बोलते समय भी क्रिया के साथ उन के अर्थ का चिंतन हो तो पाप का अत्यधिक नाश हो सकता है । पूजा के साथ भाव (अर्थ) का चिंतन हो तो पूजा का फल मिल सकता है । सामायिक के साथ उस का अर्थ (शम) हो तो सामायिक पूनिया श्रावक की भांति फल दे सकती है।
साधना के साथ काम, क्रोध, मद, लोभ आदि का ज्ञानपूर्वक नाश हो तो साधना भी सफल हो सकती है ,
ज्ञान प्राप्ति में रुचि, एकाग्रता तथा बुद्धि की आवश्यकता
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org