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योग शास्त्र
[१६६ चार पदार्थ हैं-मनुष्यता, श्रुति, श्रद्धा तथा संयम में पराश्रम।
सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः- (तत्वार्थ) सभ्यग्दर्शन ज्ञान तथा चारित्र, यह समुच्चय रूप से मोक्ष मार्ग है।
णाणं च दंसणं चेव, चरित्त च तवो तहा।
वीरियं उवओगो अ, एअं जीअस्स लक्खणं ॥ आत्मा का लक्षण है ज्ञान, दर्शन, चारित्र तप, वीर्य तथा उपयोग।
उपरि लिखित उद्धरणों से स्पष्ट है कि सम्यग्दर्शन युक्त ज्ञान तथा चारित्र (क्रिया) ये दोनों मोक्ष के रथ के दो पहिए हैं। जिन पर आरूढ़ हो कर ही मोक्ष की मजिल तक पहुंचा जा सकता है।
सर्कस में खेल देखते हुए दृश्य की ज्ञान प्राप्ति करने के लिए चक्षु तो खोलने ही पड़ते हैं । चक्षु खुले न होंगे तो क्या ज्ञान प्राप्ति हो जाएगी ? यदि चक्षु तो खुले हैं परन्तु उन को जानने की वृत्ति नहीं है अथवा सामने कोई पदार्थ ही नहीं है तो क्या चक्षु कुछ जान पाएंगे? नहीं। : अतएव क्रियावान् को ज्ञान होना ही चाहिए तथा ज्ञानवादी को क्रिया (चरित्र-देशतः या सर्वत:) होना चाहिए।
. . एक व्यक्ति यदि मार्ग का ज्ञाता हो परन्तु उस मार्ग पर " न चले तो क्या वह लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा ? नहीं ! __एक व्यक्ति मार्ग पर चल तो रहा हो परन्तु सार्थक ज्ञान
उसे न हो तो क्या वह लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा? नहीं। • तैरने के लिए ज्ञान भी चाहिए तथा हाथ पैर को हिलाने
की क्रिया भी चाहिए तथा साथ में प्रयोगात्मक क्रियाएं भी
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