SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६६] ज्ञान तथा चारित्र तर्क-टूटे हुए चारित्र के जोड़ने के लिए ज्ञान एक पर्याप्त साधन है। सुबह का भूला हुआ व्यक्ति शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते । चारित्र भ्रष्ट कोई व्यक्ति पुनः उपदेश . . तथा ज्ञान शक्ति से प्रायश्चित्त करता हआ मार्ग पर पुनः स्थापित हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है। विषयाकुल तथा भ्रष्ट व्यक्ति ज्ञान के बल से ही संयत रह सकता है। १४. Character is lost. Every thing is lost. चारित्र गया तो सब कुछ गया। तर्क-गया हआ चारित्र तो वापिस नहीं लौट सकता। परन्तु प्रायश्चित्तादि साधनों से भ्रष्ट हिंसक, पापी, अधम तथा परिग्रही भी तिर जाते हैं। जब ज्ञान की ज्योति, हृदय में प्रज्वलित होती है, तब प्रायश्चित्त, आलोचना आदि के भाव मन में उत्पन्न होते हैं । कौन सा कार्य ऐसा है जो ज्ञान के द्वारा साध्य न हो ? १५. मनभर जानने से कणभर आचरण श्रेष्ठ होता है। तर्क-यदि श्रद्धालु व्यक्तियों की बात छोड़ दी जाए तो तर्कवादी प्रायिक व्यक्ति बहुत कुछ जानने के पश्चात् ही कुछ आचरण में लाता है। ये लोग-यदि ज्ञान कम प्राप्त करें, तो आचरण इससे भी कम करेंगे। अतः बेहतर है कि जिनकी रुचि ज्ञान प्राप्ति में है उन्हें ज्ञान प्राप्त करने दिया जाए। जिस से वे शनैः-शनैः आचरण के मार्ग पर आगे बढ़ सकें । यदि ज्ञान रुचि पर क्रिया जबरदस्ती थोप दी जाए या क्रियावादी पर ज्ञान जबरदस्ती थोप दिया जाए तो परिणाम खराब भी हो सकता है। अतः रुचि अनुसार ज्ञान का अर्जन करने वाला समय आने पर उसे आचरण में भी लाए ऐसी पूर्ण सम्भावना है। १६. Speech is silver, but silence is gold. भाषण चाँदी है परन्तु मौन सोना (स्वर्ण) है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy