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योग शास्त्र
[१६७ भाषण चांदी इस लिए है क्योंकि भाषण देने वाला देने के कारण घाटे में रहता है जब कि मौन रहने वाला कुछ लेने (सुनने) के कारण लाभ में रहता है अतः मौन सोना है। ___ तर्क-चुप रहना सोना है क्योंकि चुप रहने वाला कुछ जीवन में अपनाता है जब कि भाषण देने वाले पर 'परोपदेशे पांडित्यं' की धारा लागू हो जाती है। ___ परन्तु प्रश्न यह है कि भाषण (Speech) देने वाला क्या चुप (Silent) रहे बिना ही भाषण सीख लेता है। पहले वह चुप (Silent) रहकर स्वाध्याय, चिंतन, मनन, श्रवण करता है। उस के बाद ही वह Speaker (वक्ता) बनता है।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो Silent लोगों में चुप रहने का ही एक गुण होता है जब कि Speaker लोगों में वक्तृत्व के अतिरिक्त समय पर चुप रहने का गुण भी होता है।
श्रोता (Silent) तो मात्र सुनना ही जानता है । यद्यपि काम यह भी कठिन है । परन्तु वक्ता तो "किस को कैसे सुधारना" इस कला का ज्ञाता होता है, अतः वह तो समाज के लिए एक वरदान होता है। लेखक उस से भी महान् होता है क्योंकि वह अपनी विचार धारा को अनेक लोगों तक घर बैठे हा पहुंचा सकता है।
इस प्रकार ज्ञानवादी तथा क्रियावादी दोनों एकांत वादी बन जाएं तो वे परस्पर एक दूसरे के बिना कोई महत्व नहीं रखते । मुझे ये इतने उदाहरण इस कारण से लिखने पड़े हैं क्योंकि एकांत ज्ञानवादी या एकांत क्रियावादी समाज में कुछ अधिक ही पनप चुके हैं। उन्हें ज्ञान तथा क्रिया दोनों का संतुलन सिखाना आवश्यक है भगवान् महावीर ने 'ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः' कह कर सभी प्रलापों को शांत कर दिया । ज्ञान आंख है जो कि मात्र जान ही सकती है। कुछ करना उस के वश की बात नहीं। क्रिया पग है जो मात्र चल ही सकती है, कुछ जान नहीं सकता।
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