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ज्ञान तथा क्रिया (शराबी) की तरह नशे में चूर रहता है, सरस न बन कर घटाटोप से लोगों की वंचना करता रहता है तथा सन्तोषी न बन कर 'माया' के चक्कर में प्रतिक्षण उलझा रहता है । अतः कषाय मुक्ति में (क्रिया) में भी प्रधान है ज्ञान । ८. अकृतात् अविधि कृतं श्रेयः ।
न करने से अविधिपूर्वक (प्रतिक्रमणादि) करना अच्छा।
तर्क-यह विधान शास्त्रों में क्यों हैं ? कारण यह है कि जो नहीं करता वह कुछ भी सीख नहीं पाता तथा जो अविधि से. भी करता है वह जिज्ञासादि होने से क्रमश: कभी न कभी विधि पूर्वक करना भी सीख जाता है । यह आज्ञा,अर्थ तथा अभ्यास वृद्धि के लिए की गई है। ६. केवल ज्ञानी भरत महाराज को देवों ने तब ही नमस्कार किया जब उन्हें साधु वेष देकर चारित्रधारी बना दिया गया। अतः क्रिया (चारित्र) ही प्रधान है। ____तर्क-चारित्रधारी (संयत) को ही वंदना की जाती है । असंयत को नहीं । वेष अर्पण करने से क्या भरत में संयम आ गया था जो कि वेष से पूर्व (केवल ज्ञान) न था ? संयम के वेषधारी की ही पूजा करनी चाहिए। इस विधि वाक्य के पालन के लिए भरत को वेष दिया गया था ।
यदि केवल ज्ञान से भी साधु वेष की प्रमुखता होती तो घर में ही कर्मापुत्र केवलज्ञान होने के पश्चात् ६ मास तक घर में ही माता-पिता की सेवा क्यों करते रहे ? क्या वे केवलज्ञान के पश्चात् ही साधु वेष धारण नहीं कर सकते थे ? (साधु) वेष से भी ज्ञान (केवल ज्ञान) अधिक पूज्य है।
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयं । परोपकारः पुष्याय पापाय परपीडनम् ॥
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