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योग शास्त्र
[१६१ यतना पूर्वक चलने, खड़े रहने, बोलने, शयन करने, भोजन करने तथा बोलने से व्यक्ति पाप का बन्ध नहीं करता। __तर्क - उपर्युक्त क्रियाओं से जब पाप का बन्ध रुक जाएगा तो मोक्ष होने में क्या देर लगेगी ? उपर्युक्त वाक्यों में यतना (विवेक) का महत्व दिया गया है । ज्ञान का नाम भी नहीं लिया गया है । विवेक सहित क्रिया ही पाप बंध को रोकती है। भले ही फिर वह क्रिया आध्यात्मिक या सांसारिक खाने, पीने, सोने जैसी हो अथवा छोटी से छोटी क्रिया भी क्यों न हो ।
इस यतना को कैसे प्राप्त किया जा सकता है ?
यतना (विवेक) भी ज्ञान से ही प्राप्त होती है। जीवादि का ज्ञान होगा। तो ही चलने में जीव की रक्षा के लिए विवेक होगा। भक्ष्याभक्ष्य का ज्ञान होगा तो जीव भोजन के विषय में विवेकवान हो सकेगा।
'विवेगो मोक्खो' विवेक ही मोक्ष है । यह वाक्य तो बहुत महान् है । विवेक की प्राप्ति का कारण ज्ञान भी कम महान् कैसे हो सकता है ? २. मौनेन मुनिः। ___ मौन रहने से ही मुनि होता है ।
तर्क- मुनि मौन रहना कहां से सीखेगा? यह निश्चित है कि मौन रहना यद्यपि वचन प्रयोग क्रिया का अभाव है तथापि मौन एक यत्न पूर्वक की हुई क्रिया ही है । मुनि परिषहादि को सहन करते हुए अपमानादि के वाक्यों को सुनते हुए भी 'मौन' रहता है । यह मौन-यह सहिष्णुता भी ज्ञान बल से ही प्राप्त होती है.। अन्यथा अनादिकाल से मौन करने के कारण वनस्पति आदि एकेंद्रिय प्राणी (वाचा ही न होने से वे बोल नहीं सकते) भी मुनि कहलाने के अधिकारी होंगे। उसी भय से उपाध्याय श्री यशोविजय को ज्ञानसार अष्टक में कहना पड़ा
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