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योग शास्त्र
[१५७ ___मदालसा अपने पुत्र को पालना झुलाते समय कहती है कि हे पुत्र ! तू तो सिद्ध है, बुद्ध है। कालुष्य रहित, संसार की माया से रहित है।
तर्क-यहां आत्मा के एकमात्र ज्ञानी बन जाने से ही कार्य की सिद्धि नहीं बताई गई अपितु मात्रा को छोड़ कर चरित्र को अंगीकार करने की ओर भी इंगित किया गया है। ३५. अथातो ब्रह्म-जिज्ञासा -(ब्रह्म सूत्र)
अब ब्रह्म की जिज्ञासा होती है।
तर्क-ब्रह्म (आत्मा-परमात्मा) को जान लेने मात्र से क्या होगा ? 'ब्रह्म ज्ञान' सदृश महान शब्द तो ब्रह्म (परमात्माआत्मा) की अनुभूति का वाचक शब्द हैं। यह आत्मानुभूति (ब्रह्म ज्ञान), ज्ञान की प्राप्ति मात्र से नहीं, ध्यानयोगादि साधनाओं (चारित्र-क्रिया) के द्वारा साध्य है । ३६. सा विद्या या विमुक्तये।
विद्या (ज्ञान) वही है, जिस से मुक्ति हो।
तर्क-मुक्ति को प्राप्त कराने वाला ज्ञान वही हो सकता है जो मानव को पापों से मुक्त करे तथा सदाचार सिखाए। क्रियात्मक ज्ञान ही मुक्ति की प्राप्ति कराने में सक्षम हो सकता ३७. विद्याइव ब्राह्मण माझगाम, ज
गोपाय मा शेवधिष्टेऽहमस्मि। असूयकायाऽनृजवेऽयताय, नमा बूयात् वीर्यवती तथा स्याम् ॥
विद्या ब्राह्मण के पास आ कर बोली, कि मैं तेरी निधि हूं। अतः तू मेरी रक्षा कर । मुझे (विद्या को) किसी ईर्ष्यालु, मायावी तथा असंयत व्यक्ति को मत देना-इसी उपाय से मैं बलवती हो सकती हूं।
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