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________________ १३४] सम्यक् चारित्र की भावना को तोड़ सके ? भावना भवनाशिनी-यदि भावना हो तो समस्त बन्धन टूट जाते हैं। संसार ने पकड़ा है :-- आज के लोग प्रायः कहते दृष्टिगत होते हैं, कि महाराज ! संसार ने तथा परिवार ने हमें पकड़ रखा है। वस्तुत संसार ने आप को नहीं, आप ने संसार को पकड़ रखा है। अन्यथा भावना हो तो मार्ग भी मिल जाता है तथा भावना साकार भी हो सकती है। जहां चाह, वहाँ राह । हिम्मते मर्दा, मद दे खुदा । Where there is a will, there is a way. चारित्र इस जन्म में नहीं. तो आगामी भव मे भी ग्रहण तो करना ही पड़ेगा। इस के बिना मुक्ति हो ही नहीं सकती। मन में से शनैः शनैः मोह को कम करते जाओ, वैराग्य वासित बनते जाओ। सत्साहित्य स्वाध्याय, गुरुजनो की संगति, धर्ममय वातावरण तथा सतत अभ्यास से चारित्र प्राप्ति संम्भव हो सकती है। व्रत, नियम, प्रत्याख्यान रूप चारित्र, पापों को आत्मा की ओर आने से रोक लेता है । यथा कोई सांकल, चोर को गृह में आने से रोक लेती है, उसी प्रकार आत्मा का ज्ञान दर्शन तथा सुख का भंडार (खजाना) कोई चरा नहीं सकता, यदि व्रतादि के द्वारा पापों को आत्मा में आने से रोक लिया जाए। - आप रात्रि को दरवाजा खोल कर सोते हैं या सांकल लगा कर ? सांकल लगा कर सोते हैं, कि कहीं चोर हमारा धन न लूट ले जाए। अपने खजाने की सुरक्षा के लिए तो आपने सांकल कंडी) बनायी। परन्तु आत्मा के धन सरक्षा के लिए आपने कौन सी सांकल लगाई ? आत्मा के धन को काम, क्रोध, मद, लोभ, मान आदि के चोर लूटते जा रहे हैं ? परन्तु आप ने ऐसी सांकल नहीं लगाई, जिस से चोर हमारे आत्मगृह में प्रवेश न कर सकें। ये चोर अनादि काल से आत्म रूपी गृह में प्रवेश कर आप का खज़ाना सतत लूटते जा रहे हैं, परन्तु आप सोए पड़े हैं, सारा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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