________________
योग शास्त्र
[१२१ है । ऐसा प्रायः नहीं होता। हाई वे' वो ही हो सकता है, जिस पर चल कर प्रत्येक व्यक्ति अपनी मंजिल को पा लेता है । सर्वविरति चारित्र एक ऐसा ही 'हाई वे' है, जिस पर चल कर कोई भी साधक मोक्ष के लक्ष्य को पा सकता है। शास्त्रों में उपलब्ध मरुदेवी माता तथा भरत चक्रवर्ती, कर्मापुत्र, इलाची कुमार, आषाढ़ाभूति की मोक्ष प्राप्ति के दृष्टान्त मात्र आपवादिक हैं । ___ सर्वप्रथम देश विरति चारित्र अंगीकार किया जाता है । उस देश-विरति चारित्र में कोई अतिचार न लगे, इस का पूर्ण ध्यान रखना आवश्यक है । क्योंकि १२ व्रतों में लगने वाले अतिचारों से व्रत दुर्बल हो जाता है । यदि व्रत में दोष नहीं लगता, तो वह चारित्र तथा व्रत-प्रत्याख्यान आगामी भवों में भी चारित्र का कारण होगा।
श्रावक या साधु बन कर उस चारित्र का भली भांति पालन न किया, उस की विराधना तथा आशातना की, तो अगले भवों में चारित्र उपलब्ध न हो पाएगा। . __चारित्र धर्म की प्राप्ति जन्म-जन्मातंर के अनन्त पुण्योदय से होती है । जब जीव का पुण्य कर्म संचित हो जाता है तब क्रमश: आर्य देश, उत्तम कूल, उत्तम जाति, जैन धर्म, गुरुओं की संगति, चारित्रादि प्राप्त होते हैं।
सम्यग्दर्शन तथा ज्ञान की तरह सम्यक चारित्र भी मोक्ष का कारण होता है । वर्तमान में समाज एवं श्रमण संघ में स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है, कि मन में चारित्र के प्रति जितनी रुचि है, उस से अधिक कपट क्रियाएं की जाती हैं। बाह्यतः शद्ध चारित्र का प्रदर्शन किया जाता है तथा अंतर्मन से वह कुछ अंश तक ही सीमित होता है। आडंबर अधिक होता है, चारित्र की वैसी. भावना नहीं होती है। नियम-प्रत्याख्यान के साथ-साथ कपट विद्या भी चलती रहती है। भगवान महावीर का कथन है, कि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org