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________________ १२०] सम्यक् चारित्र उस की यहाँ पर गणना नहीं की गई है। संसार में मानव बहुत पाप करता है। उन पापों से जब मानव विरत हो जाता है तथा उनका प्रत्याख्यान कर लेता है, मन में पाप मुक्त बनने का दृढ़ संकल्प कर लेता है तो कभी ऐसा समय अवश्य आता है, कि वह पाप से मुक्त हो जाता है । पाप मानव के जीवन का अंग बन चुका है। भगवान महावीर ने कहा है, कि यदि किसी व्यक्तिको उदर पूर्ति के लिए भोजन नहीं मिलपाता है, तो उसका अनायास ही उपवास हो जाता है, तो उसे उपवास का फल नहीं मिलेगा। उपवास का फल उसी दशा में मिलेगा, कि जब वह इच्छा से खाने पीने का त्याग करे । यदि कोई व्यक्ति धनहीन है। अत: उससे पैसे का सुख उपलब्ध ही नहीं, तो उस दरिद्री को त्यागी नहीं कहा जा सकता । त्याग से तात्पर्य है, स्वेच्छा से भौतिक पदार्थों का त्याग । किसी वस्तु के होते हए भी उसके सेवन का त्याग । जब ऐसी भावना से प्रत्याख्यान किया जाता है, तब चारित्र की प्राप्ति होती है । यथा - जेअ कंते पिए भौए, ल द्धे वि पिट्ठी कुव्वइ । साहीणे चयई भोए, से हुंचाई त्ति बुच्चई ॥ देशविरति श्रावक का पंचम अविरत मुण स्थान एवं सर्व विरति साधु का षष्ठ गुणस्थान होता है। कुछ अविरति श्रावक चतुर्थ गुणस्थान धारी होते है । देवता या शासनदेव यदि सम्यगदष्टि वाले हों तो उनका गुण स्थान भी चतुर्थ होता है। अतएव सम्यकत्वी देवता श्रावक का भाई बन जाता है। ____चारित्र की प्राप्ति से मुक्ति निश्चित हो सकती है। भगवान् महावीर के अनुसार चारित्र मोक्ष का राज मार्ग है । मोक्ष का सही मार्ग तो चारित्र का मार्ग है। कोई व्यक्ति फूलों से भरे मुख्य राज मार्ग (मख्य सड़क) को छोड़ कर कांटों का मार्ग अपना कर अपने लक्ष्य (नगर)तक पहुंच जाता है-वह अपवाद मार्ग ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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