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सम्यक् चारित्र
योग शास्त्र के प्रणेता आचार्य हेमचन्द्र सम्यक् चारित्र का गुणगान करते हुए कहते हैं- .
सर्व सावध योगानां, त्यागश्चारित्र मिष्यते । ___ कीर्तितं मदहिंसादि व्रत भेदेन पंचधप॥
अर्थ :-सभी पाप वृत्तियों का त्याग ही चारित्र है। यह चारित्र अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, तप, अपरिग्रह इस प्रकार पांच भेदों वाला है।
विवेचन:-ज्ञान से वस्तु तत्व को ज्ञात किया । दर्शन से उस वस्तु तत्व का निश्चय हुआ। उस के पश्चात् चारित्र के द्वारा आत्मा को आचरण में लगाने का प्रयत्न किया। इन तीनों योग साधनों का क्रम है। सर्वप्रथम मार्ग का ज्ञान आवश्यक है तदोपरान्त उस मार्ग के सही या गलत होने का निर्णय (निश्चय) होना आवश्यक है । उस के पश्चात् उस मार्ग पर चलने वाला अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।
भोजन के मात्र ज्ञान से तृप्ति संभव नहीं। भोजन को जब • उदरसात् करने की क्रिया की जाती है, तभी तृप्ति होती है। इस
श्लोक में चारित्र को सर्व विरति के रूप में ही स्वीकार किया गया है। इस योग शास्त्र में श्रावक के १२ व्रतों का देश विरति धर्म का निरूपण आगे वर्णित है । वह देश (अंश) से होने के कारण
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