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योग शास्त्र
[१०६ यदि ऐसा नहीं है तो उस श्रद्धा को श्रद्धा नहीं कहा जा सकता। भगवान महावीर ने धन्ना अणगार की भी। महारानी चेलना के सतीत्व की तथा राजा श्रेणिक को श्रद्धा की प्रशंसा की। पूणिया श्रावक की सामायिक की प्रशंसा की। समवसरण में श्रावक की प्रशंसा ? परन्त स्वयं पर तेजोलेश्या का उपसर्ग आने पर सतत चितित तथा रुदन करने वाले सेवा भावी सिंह मनि की श्रद्धा की
ओर इंगित किया था । गौतम की, महावीर के प्रति श्रद्धा, अलौकिक थी। आषाढ श्रावक की उस समय के आगामी २३वें तीर्थंकर भ०पार्श्वनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा ही थी, जो उन्होंने पार्श्वनाथ समये अपना मोक्ष ज्ञात कर उनकी प्रतिमा बना कर उस का पूजन किया था। यह प्रतिमा आज भी पूजित हो रही है । चारित्र तो क्या ! ज्ञान भी अज्ञान हो जाता है, यदि सम्यग् दर्शन न हो ।
मिथ्या शास्त्र भी सत् शास्त्र :- सत् शास्त्र अथवा सर्वज्ञप्रणीत आगम भी मिथ्या ज्ञान युक्त हो सकता है, यदि शैक्ष का दर्शन विशुद्ध न हो । लौकिक पर्व तथा लौकिक महाभारत आदि शास्त्र भी सम्यग ज्ञान के प्रयोजन हो सकते हैं, यदि उन्हें पढ़ने वाला सम्यग्दृष्टि हो। ___ सूर्य राशि संक्रमण (संक्रान्ति) जैसा पर्व, जो लौकिक था, ब्राह्मणों की परम्पराओं के अनुसार मनाया जाता था। इस पर्व को समयज्ञ गुरु वल्लभ ने श्रद्धा का जामा पहना कर लोकोत्तर बना दिया तथा जैन समाज को चारित्रहीन ब्राह्मणों तथा असंयतों की पूजा से हटा कर गुरु भक्ति एवं प्रभु भक्ति का पर्यायवाची बना दिया। इस का श्रेय उन के सम्यग दर्शन की विशद्धि को ही प्रदान करना चाहिए। दीवाली जैसा लौकिक पर्व क्या जैन लोग लोकोत्तर ढंग में नहीं मनाते । तो संक्रान्ति जैसे लौकिक पर्व लोकोत्तर ढंग से मनाने का विरोध करना भी मिथ्यात्व का पोषण करना है। बिल्कुल उसी तरह जैसे दिवाली का विरोध करना ।
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