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________________ १०४] सम्यग्दर्शन : मोक्ष का प्रथम सोपान अनर्गल प्रलाप भी करने लगा। तब आचार्य देव श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म० ने अपनी सहिष्णुता का परिचय देते हुए . एक ही उत्तर दिया, कि "हे भाई ! यदि मेरे में साधुता होगी, तो तेरे द्वारा नवकार मंत्र गिनते हए मझे स्वयं ही नमस्कार हो जाएगा। तू माने या न माने।" वह व्यक्ति उनके दृष्टिकोण तथा समता से बहुत प्रभावित हुआ। आज ऐसा दृष्टिकोण प्रस्तुत करने वाले साधु बहुत कम हैं । आवश्यकता है, साधुओं को भ्रातृभाव, वात्सल्य, प्रेम तथा सहिष्णुता सिखाने की। ईर्ष्या, घृणा, स्वार्थ, परोत्कर्ष के प्रति ईर्ष्या, ये सब तत्व साधुता को कलंकित कर देते हैं। ___पंडित सुख लाल जी भी एक पुस्तक में लिखते हैं, कि मैंने वाराणसी में अध्ययन करते समय पंडितों के वादविवादों को सुना, प्रत्येक धर्म के प्रति कटाक्षों का विषपान किया। फलतः मुझे दूसरे की बात सुनने की सहिष्णुता तथा धार्मिक सहिष्णुता की शक्ति अनायास ही प्राप्त हो गई। ___ यदि आत्म कल्याण करना है, तो दृष्टि राग का चश्मा आंखों पर से उतार फेंकना होगा। पीला या लाल चश्मा लगाने से आप को वस्तु का सही स्वरूप दृष्टिगोचर न होगा। इसी चश्मे की कृपा है, कि मानव को अपने प्रिय संप्रदाय, साधु या व्यक्ति में दुर्गुण भी गुण के रूप में दिखते हैं तथा अन्यों के गुण भी दुर्गुण नज़र आते हैं। जब आप की असली आँखें सब कुछ सही देख रही हैं, तो चश्मा पहनने की क्या आवश्यकता है ? जब 'आई साइट' वीक हो जाए, तभी चश्मे की उपयोगिता रहती है। यदि आप के पास अनेकाँत की दूरदष्टि हो, सत्य गवेषणा की योग्यता का उपनेत्र हो, तो अन्य उपनेत्रों से क्या ? __ आत्मा आदि की श्रद्धा-यह आवश्यक नहीं, कि सम्यग्दृष्टि को देव-गुरु-धर्म का ज्ञान एवं श्रद्धा हो, जिस ने देव-गुरु-धर्म का नाम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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