________________
योग शास्त्र सार है । जब तक अन्यान्य साधनाओं, सम्प्रदायों या क्रियाओं के कारण राग द्वेष की वृद्धि होती हो, तब तक सम्यग्दर्शन में संदेह समझना चाहिए।
देव गुरु धर्म में (श्रद्धा)-यह पूर्ण विश्वास हो जाना चाहिए, कि देव तथा गुरु ने जो कुछ कहा है, बिल्कुल सत्य ही कहा है । इस का नाम सम्यग्दर्शन है। दूसरे शब्दों में देव गुरु धर्म में पूर्ण श्रद्धा होनी चाहिए। जिस को हम ने देव मान लिया, वह देव सच्चा होना चाहिए। हमें उस का ज्ञान पहले प्राप्त करना पड़ेगा। मानो आप बाज़ार में गए। वहाँ एक घड़े को देखा । आप ने घड़े को लिया। छोटा सा घड़ा, मिट्टी का घड़ा, २-४ रुपये का घड़ा, परन्तु आप उसे भी ग्रहण करने से पहले टकोर कर देखते हो । देखते हो न ! "कि यह घड़ा कैसा है।" जब २-४ रुपए का घड़ा भी आप टकोर कर देखते हैं तथा जांच परख कर लेते हैं, तो जिस परमात्मा को हमने ग्रहण करना है, पाना है, जिस परमात्मा पर श्रद्धा विश्वास रखना है, उस परमात्मा को भी कितना टकोर कर देखना चाहिए, यह सोचने की आवश्यकता है। छोटे से घड़े की तरह परमात्मा को भी जांच परख कर स्वीकार करना है। कहीं ऐसा न हो, कि जो सुदेव हैं, उन का आप के हृदय में वास न हो तथा जो कुदेव है, भवसागर में डुबोने वाले हैं, उन पर आप की श्रद्धा हो जाए। ऐसी अयथार्थ की श्रद्धा आपके संसार को बढ़ाएगी ही, घटाएगी नहीं।
सच्चे देव के ऊपर सच्चा विश्वास ! आप का परमात्मा कौन है. ? आप का लक्ष्य कौन है ? इसी प्रश्न पर आप की सारी साधना आधारित है। आप को जहां पहुंचना है तथा जिस तक • पहुंचना है, उस परमात्मा का सच्चा ज्ञान कर लेना जरूरी है। महावीर, बुद्ध, राम, विष्णु, महेश, गणेश इन नामों से हमें कोई प्रेम नहीं। परमात्मा उसे मानो, जिस में वास्तव में वीतरागता
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org