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सम्यग्यदर्शन : मोक्ष का प्रथम सोपान हो । कलि-काल सर्वज्ञ, आचार्य देव के शब्दों में- ...
भव बीजांकुर जनना, रागाघा क्षय मुपागता यस्य । ब्रह्मा वा, विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥
वह परमात्मा कर्म के कालुष्य से मुक्त हो, संसार के बीज (राग द्वेष) से रहित हो। जब ऐसे परमात्मा का ज्ञान होगा, तभी उस पर वास्तव में श्रद्धा होगी, तभी आप सम्यग्दर्शन के अधिकारी हो सकेंगे।
देव पर श्रद्धा ! गरु पर श्रद्धा ! गुरु वह है, जो पंच महाव्रत धारी हो । गुरु वह है, जो निग्रंथ हो । जिस के पास रागद्वेष की ग्रन्थि आप को देखने को बहुत कम मिले या न मिले । जो संयम पालन में पूर्ण हो, जो कंचन कामिनी का त्यागी हो। ऐसे गुरु पर श्रद्धाभाव होना सम्यग्दर्शन है। .
केवली प्ररूपित धर्म पर श्रद्धा-जो कुछ केवली भगवन्त ने कहा है. वह सत्य है, नितान्त सत्य है। उस में शंका की कोई गुंजाइश नहीं हो सकती । शास्त्रों की बात में सन्देह को कोई स्थान नहीं। यह भी सम्यग्दर्शन है।
कई बार आप को भगवान् के द्वारा कथित तत्वों पर श्रद्धा नहीं होती। भगवान ने कहा-पथ्वी गोल नहीं है, यह सुन कर हमारे युवक श्रद्धा भ्रष्ट हो जाते हैं, कि वर्तमान विज्ञान तो पृथ्वी को गोल मानता है। हम भगवान् की बात को कैसे माने ? भगवान् ने कहा, कि चन्द्रमा पर देवता रहते हैं, तो युवकों को इस बात पर भी विश्वास नहीं होता। भगवान ने कहा, कि जब व्यक्ति इस संसार में आता है, तो वह दुर्लभ मानव जीवन को ले कर आता है। विश्व में मानव बहुत कम हैं और आप कहते हैं, कि मानव बढ़ते ही जा रहे हैं ? भगवान् की वाणी पर भी श्रद्धा नहीं होती है । क्या सचमुच मानव बढ़ रहे हैं। भगवान महावीर ने कहा था, कि मनुष्य जीवन दुर्लभ है । मनुष्यत्व की प्राप्ति उससे भी दुर्लभ
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