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योग शास्त्र
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ज्ञानी महापुरुषों के जीवन की दृष्टि ही कुछ और होती है। सुख में ही नहीं, दुःख में भी सुख के दर्शन करते हैं । दुःख को वे अवश्य मानते | दुःख के अभाव में वे पीड़ित से दृष्टिगत होते हैं ! दुःख को वे जीवन की चाबी मानते हैं । संघर्षों को वे जीवन का उपनाम समझते हैं ।
यह सब क्यों होता है ? ज्ञान दृष्टि के कारण । ज्ञान की दृष्टि उन के दृष्टि कोण में 'अमृत' भर देती है । उन का प्रत्येक विचार ज्ञान पर आधारित होता है । इसीलिए वे सुख में अतिरेक रूप से सुखी नज़र नहीं आते तथा दुःख में निराश - उदास नज़र नहीं आते।
महापुरुष कहते हैं - O God ! I Love worries and troubles. I want sorrows, because these are the ways to find your greatness.
ये चिन्ताएं ये विपत्तियाँ, ये शोक तथा रोग तो God Gift हैं - ईश्वर के वरदान हैं, किसी भाग्यशाली को ही ये वरदान प्राप्त होते हैं, ईसा मसीह की ज्ञान दृष्टि ने उन्हें शूली पर चढ़ते हुए भी निराश हताश न होने दिया । भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु का बलिदान क्या भारत के लिए व्यर्थ प्रमाणित हुआ ? सुदर्शन सेठ की शूली क्या अनायास ही सिंहासन बन गई । उन के सत्व में, तेज में, ज्ञान का बल था ।
महापुरुषों के चिंतन में रोग, रोग नहीं होते, कर्मक्षय के अभूतपूर्वं साधन होते हैं। वे दुःखों और रोगों से भागते नहीं हैं । वे इस जन्म के कष्टों को हंस हंस कर सहन करते हैं, क्योंकि वे समझते हैं कि हंस कर या रो कर-कर्मों को भोगना तो पड़ेगा ही । इसी सहनशीलता से कई बार उन के कर्मों की उदीरणा होती है । इन समस्त कर्म परिणामों से वे कर्मों से मुच्यमान होते हुए मुक्ति की मंजिल को तय कर रहे होते हैं ।
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