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"महाराज ! मेरी पत्नी व्याख्यान में आती है ।" उस का
उत्तर था ।
योग शास्त्र
मैंने उससे पुन: पूछा, कि पत्नी के धर्म का लाभ क्या तुम को मिल सकता है ? पत्नी का खाया हुआ भोजन क्या तुम्हारा भी पेट भर देगा ? पत्नी को अर्द्धांगिनी कहते हैं, जिस का अर्थ है, कि पति के किए हुए धर्म का आधा भाग पत्नी को मिल सकता है । परन्तु पति को पत्नी का अर्द्धांग नहीं कहा जाता । अतः पत्नी के धर्म का फल पति को कैसे मिल सकता है ?
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वस्तुतः जो भोजन करता है - पेट उसी का भरता है । अतः ज्ञान प्राप्ति के लिए व्याख्यान श्रवण तक सीमित नहीं रहना चाहिए । चातुर्मास के अतिरिक्त समय में ( ८ मास में ) आप के पास ज्ञान प्राप्ति का क्या अन्य साधन है ? याद रखिए, कि स्वाध्याय करने वालों की शंकाएं स्वतः निर्मूल हो जाती हैं । स्वाध्याय के द्वारा पूर्व तैयारी करने वाला ही व्याख्यान श्रवण में तत्व ज्ञान के रहस्य को प्राप्त कर सकता है ।
साधु स्वयं पढ़ कर आपको कहाँ तक ज्ञान परोस सकता है । गृहस्थ के पास तो मानो समय ही नहीं है । साधु का ज्ञान तो साधु के काम ही आ सकता है। स्वयं का ज्ञान ही समय पर काम आता है । उधार लिया हुआ ज्ञान समय पर विस्मृत भी हो सकता है ।
एक सेठ था । वृद्धावस्था में उस की आंखों का प्रकाश समाप्त हो गया । सेठ को सभी सज्जनों ने कहा, कि आप अपनी आंखें ठीक करवा लो । सेठ ने उत्तर दिया, कि मेरी पत्नी मेरी पूर्ण सेवा कर रही है । मेरे पुत्र हैं, मेरी पुत्रवधुएं हैं, इस प्रकार १ पत्नी, ८ पुत्र तथा ८ पुत्रवधुओं को मिलाकर उनकी ३४ आँखें मेरे पास हैं । मेरी २ आँखों से कोई प्रयोजन नहीं है । परिवार के सदस्यों ने भी बहुत समझाया, परन्तु वह वृद्ध अपनी बात पर
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