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ज्ञान : श्रेयस का योग उस ने सोचा, कि मशीन का जोड़ (संधि-स्थल) कहीं जुड़ा न हो, जिस से मशीन चल न पाती हो । उस ने देखा, तो सचमुच मशीन के २ पुर्जे परस्पर स्पर्श कर रहे थे, जिस के कारण मशीन चल नहीं रही थी। मशीन देखने के बाद उसने हथौड़ा मंगवाया तथा उसी स्थल पर हथौड़े की चोट लगायी । बस फिर क्या था ? मशीन चल पड़ी। मकैनिक ने १० हजार रु० मांगा, परन्तु सेठ ने देने से इंकार कर दिया तथा कहा, कि "एक हथौड़ा लगाने का इतना रुपया कैसे ? यह हथौड़ा तो मैं भी लगा सकता था। हथौड़ा लगाने का तो मैं एक रुपया ही दे सकता हूं।" मकैनिक ने कहा, “सेठ जी ! हथौड़ा मारने का तो एक रुपया ही है। हथौड़ा कहां मारना है ? इस बात के ६६६६ रु० हैं।" वास्तव में क्रिया का मूल्य एक रु० ही होता है । ज्ञान अधिक मूल्यवान होता है । ____ आज हमारी समाज में स्वाध्याय करने वालों की बहुत कमी है । स्वाध्याय का कार्य मानो समाज ने साधुओं के मस्तक पर डाल दिया है । गृहस्थों को मानों ! ज्ञान की आवश्यकता ही नहीं।
दिगम्बर समाज में आज भी स्वाध्याय की बहत रुचि है। उन के पास सैंकड़ों विद्वान पंडित हैं. जो प्रत्येक विषय का अध्ययन करा सकते हैं। उन के मन्दिरों में पठनकक्ष तथा लायब्रेरी भी होती हैं । मन्दिर में जाने वाला प्रत्येक व्यक्ति कम से कम १० मिनिट स्वाध्याय करके ही घर वापिस आता है।
ज्ञान का क्षयोपशम भी सतत अभ्यास करने से होता है। जो पुरुषार्थ ही नहीं करता, उस का क्षयोपशम कैसे होगा? व्याख्यान श्रवण की प्रवृति आज भी हमारी समाज में हैं, परन्तु स्वाध्याय की रुचि नहीं है ।
एक बार एक गृहस्थ से मैंने पूछा, “भाई ! तुम व्याख्यान में क्यों नहीं आते ?"
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