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योग शास्त्र
[७५ विदेश में भी जा सकता है। थोड़े समय के लिए मौत से भी बच सकता है । परन्तु, ज्ञान से व्यक्ति जन्म-जन्मांतर की मृत्यु से बच जाता है। ..'सुरक्षा कैसे की जाती है'- यह ज्ञान ही सुरक्षा के लिए पर्याप्त है । ज्ञान होगा, तो इहलोक में सुरक्षा होगी। ज्ञान के बल से परलोक में भी सुरक्षा होगी। ज्ञान का धन परलोक में भी साथ जाता है । ज्ञान की थाती मानव का मूल्य बढ़ाती है । एक जन्म में मानव दो भाषाओं या दो विषयों का ज्ञान प्राप्त कर ले, तो वह दो आदमियों के कार्य की पूर्ति कर सकता है । जीवन में अनेक विद्याओं की प्राप्ति करने वाला अनेक जन्म में सुख को प्राप्त क्यों नहीं कर सकता। "एकः शब्दः सम्यगज्ञानः सुप्रयुक्तः स्वर्गे लोकेच कामधुक भवति", एक ही शब्द का सम्यक्तया ज्ञान हो जाए तो वह व्यक्ति के लिए इहलोक में व परलोक में कामधेनु के समान इच्छाओं का पूरक होता है। ___अज्ञान के कारण ही प्राणी को जन्म-जन्म में विपत्तियों को भोगना पड़ता है । अज्ञान से ही जन्म-मरण का चक्र चलता है । यदि अज्ञान ही न हो, तो ज्ञान के सद्भाव में न जन्म की शक्यता है, न मरण की।
ज्ञान का प्रभाव प्राप्त होने के पश्चात् प्राणी मौत से भयभीत नहीं होता। उसे ज्ञान होता है, कि 'मरना सच और जीना झूठ' । मौत तो आनी ही है, किसी भी उपाय से मौत से बचा नहीं जा सकता। एक बार तो मरना हो पड़ेगा, अत: मरने से डरना क्या ? कोई भी प्राणी दो बार नहीं मरता । ज्ञानी की दृष्टि मरण पर होती है, जीवन पर नहीं। वह मरण को याद करके निराश नहीं होता । वह जीवन के महत्व को समझता है ।
ज्ञानी श्वासोच्छवास मां, करे कर्म नो क्षय । अज्ञानी भव कोडि लगे, कर्म खपावे तेह ॥
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