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________________ ७४] ज्ञान : श्रेयस् का योग ___Knowledge is the best virtue-ज्ञान सर्वोत्तम गुण है। यदि मानव के पास ज्ञान है, तो समस्त गुण स्वयमेव आकर्षित होते चले आते हैं । अज्ञानी के समस्त गुण समाप्त होते जाते हैं। उपाध्याय श्री यशोविजय जी म. कहते हैं, कि "ज्ञानस्य परासंवित्ति चारित्रम्" ज्ञान का परम अनुभव ही चारित्र है। चारित्र, कूछ अन्य पदार्थ नहीं है । ज्ञान में पूर्णतः मग्न हो जाना, आत्म ज्ञान में ही तल्लीन हो जाना, विवेकी हो जाना ही चारित्र है । ज्ञानानुभव के बिना चारित्रशश शृग बन जाता है । ज्ञान का चिंतन, अनुभव, तीव्र दशा ही चारित्र है। ____ ज्ञान के द्वारा अच्छे-बुरे का ज्ञान होता है । सच्चा ज्ञानी पाप मार्ग से हट कर अवश्य ही पूण्य मार्ग की ओर अग्रसर होगा। जब यह ज्ञान हो जाता है, कि विष के द्वारा मृत्यु हो जाएगी, तो कोई भी इच्छा से विषपान नहीं करता । अमत से जीवन मिलता है। यह ज्ञान प्राप्त कर प्रत्येक व्यक्ति अमत पान करने को उत्सुक होगा। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् स्व-पतन कौन करेगा। अतःएव ज्ञान की उत्कट दशा ही चारित्र कही गई है। ज्ञान एक जन्म की साधना से नहीं मिलता। ज्ञान के लिए जन्म-जन्म की साधना चाहिए। यदि मानव का पूर्वभव का क्षयोपशम अच्छा है, तो एक बार पढ़ लेने से ही अन्तरंगवर्ती अर्थ का ज्ञान हो जाता है। यदि पूर्वभव का क्षयोपशम अच्छा नहीं, तो अनेक प्रयत्न करने पर भी व्यक्ति शिक्षार्जन नहीं कर पाता। ___ एक ग्रन्थ के पढ़ने से जो विस्तृत ज्ञान होता है, वह पर्व ज्ञान के स्मरण का परिणाम है । ज्ञान तथा चारित्र दोनों अकस्मात प्राप्त नहीं होते। क्या धन रोगी को बचा पाता है ? धन-दौलत होने से व्यक्ति अच्छी चिकित्सा प्राप्त कर सकता है । चिकित्सा के लिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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