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तत्त्वाधिगम के उपाय
जैनदर्शन में तत्त्वाधिगम अर्थात् वस्तुस्वरूप को समझने के लिए प्रमाण, नय, निक्षेप आदि उपाय बताये गये हैं। इनके द्वारा ही वस्तुस्वरूप का ठीक-ठीक परिज्ञान होता है। आचार्य उमास्वामी ने सर्वप्रथम प्रमाण और नय के द्वारा वस्तुस्वरूप के परिज्ञान का निर्देश किया है।
भट्ट अकलंक देव ने कहा है-'आत्मा आदि पदार्थों का ज्ञान ही प्रमाण है। उनको जानने का उपाय निक्षेप है तथा ज्ञाता अर्थात् जानने वाले के अभिप्राय का नाम नय है। अतः इन प्रमाण, नय और निक्षेपरूप युक्तियों से ही पदार्थ का बोध होता है।"
आचार्य यतिवृषभ ने भी यही भाव अभिव्यक्त किया है।
आचार्य वीरसेन स्वामी ने प्रमाण, नय और निक्षेप की सार्थकता प्रकट करते हुए धवला टीका प्रथम पुस्तक में उद्धरण दिया है-'जिस पदार्थ का प्रत्यक्षादि प्रमाणों द्वारा, नैगमादि नयों द्वारा और नामादि निक्षेपों द्वारा सूक्ष्मदृष्टि से विचार नहीं किया जाता है, वह पदार्थ कभी युक्त (संगत) होते हुए भी अयुक्त (असंगत) सा प्रतीत होता है और कभी अयुक्त होते हुए भी युक्त-सा प्रतीत होता है। अत: प्रमाण, नय और निक्षेप के द्वारा पदार्थ का निर्णय करना चाहिए। - आचार्य यतिवृषभ तथा जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने भी यही कहा है-'जो व्यक्ति प्रमाण, नय और निक्षेप से पदार्थ की ठीक-ठीक समीक्षा नहीं करता उसे अयुक्त पदार्थ भी युक्त और युक्त पदार्थ भी अयुक्त ही प्रतिभासित होता है।' - श्री माइल्ल धवल ने निक्षेपादि के जानने का प्रयोजन बतलाते हुए कहा है'जो निक्षेप, नय और प्रमाण को जानकर तत्त्व की भावना करते हैं वे वास्तविक तत्त्व के मार्ग में संलग्न होकर वास्तविक तत्त्व को प्राप्त करते हैं।'
'यदि आप गुण, पर्याय, लक्षण, स्वभाव, निक्षेप, नय और प्रमाण को भेद
तत्त्वाधिगम के उपाय :: 81
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