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________________ विच्छेद नहीं होता, इसलिए वे ज्ञानादि उस-उस द्रव्य के गुण हैं। गुणों को 'अर्थरूप' भी कहा गया है। 'अर्थ' शब्द गमनार्थक 'ऋ' धातु से बना है। गुणों में अनादि सन्तान रूप से अनुगत रूप अर्थ पाया जाता है, इसलिए गुण का 'अर्थ' यह पर्यायवाची नाम सार्थक ही है।5० यतः गुण अन्वय प्रधान होता है अत: उसे 'अर्थ' शब्द द्वारा कहना ठीक ही है। इस प्रकार यद्यपि गुण सहभू, अन्वयी और अर्थ रूप सिद्ध होते हैं तथापि उन्हें सर्वथा नित्य मान लेना उचित नहीं है, किन्तु गुण द्रव्यों के समान कथंचित् नित्य और कथंचित् अनित्य होते हैं। सामान्य की अपेक्षा वे नित्य हैं और अपने गुणांशों की अपेक्षा अनित्य। जिस प्रकार वस्तु परिणमनशील है उसी प्रकार गुण भी परिणमनशील हैं, इसलिए गुणों में भी उत्पाद और व्यय ये दोनों होते हैं, उनमें ध्रुवत्व की स्थिति गुण-सन्तति की अपेक्षा प्रत्यभिज्ञान से सिद्ध है। अतएव गुण स्वयंसिद्ध और परिणामी भी है, इसलिए नित्य और अनित्य रूप होने से उनमें उत्पाद-व्ययध्रौव्यात्मकता भी सिद्ध है।51 ___संक्षेप में द्रव्य में भेद करने वाले धर्म को भी जैन-दर्शन गुण मानता है।2 अथवा जो द्रव्य को. द्रव्यान्तर से पृथक् करता है वह भी गुण है।53 वस्तु की सहभावी विशेषता का वाचक भी गुण है। द्रव्य के विस्तार विशेष को भी जैनाचार्यों ने गुण माना है। भेद-इस प्रकार द्रव्य में जितने भी गुण प्राप्त होते हैं वे सभी गुण यद्यपि गुणत्व सामान्य की अपेक्षा से समान हैं तथापि उनमें भेद भी हैं। उनमें कितने ही साधारण गुण हैं और कितने ही असाधारण गुण हैं। वैसे द्रव्य में अनन्त गुण विद्यमान हैं, किन्तु उन्हें दो भागों में विभक्त किया गया है-1.साधारण या सामान्य गुण और 2. असाधारण या विशेष गुण। जो गुण सामान्य रूप से सब द्रव्यों में पाये जाएँ उन्हें सामान्य गुण कहते हैं। जैसे-अस्तित्व आदि। और जो गुण सब द्रव्यों में न पाये जाएँ, अथवा जो गुण प्रत्येक द्रव्य के विशिष्ट गुण होते हैं उन्हें विशेष गुण कहते हैं। जैसे-जीव के ज्ञान, दर्शन आदि गुण और पुद्गल के रूप रसादि गुण ।।55 - सामान्य गुण-अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व, प्रदेशत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तत्व ये द्रव्यों के दश सामान्य गुण हैं।56 आचार्य अमृतचन्द्र ने जीवादि द्रव्यों के सामान्य गुण इस प्रकार बतलाये हैंअस्तित्व, नास्तित्व, एकत्व, अन्यत्व, द्रव्यत्व, पर्यायत्व, सर्वगतत्व, असर्वगतत्व, सप्रदेशत्व, अप्रदेशत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व, सक्रियत्व, अक्रियत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, कर्तृत्व, अकर्तृत्व, भोक्तृत्व, अभोक्तृत्व और अगुरुलघुत्व ।।57 उक्त दस सामान्य गुणों में से अन्त के चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तत्व इन चार गुणों को नयवाद की पृष्ठभूमि :: 65 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004231
Book TitleJain Darshan me Nayvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhnandan Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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