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है उसी रूप में बना रहता है। जीव चींटी से हाथी या मनुष्य, पशु, पक्षी हो सकता है, पर वह जीवत्व को कभी नहीं छोड़ सकता । अतएव प्रत्येक वस्तु या गुणमें सजातीय परिणमन सदा होता रहता है । प्रायः देखा जाता है कि हमारी बुद्धि विषय के अनुसार सदा बदलती रहती है। जो वर्तमान में पट को जान रही है, वही कालान्तर में घट को जानने लगती है। इसी प्रकार जो आम वर्तमान में हरा है वही कालान्तर में पीला भी हो जाता है । अतः इस प्रकार परिणमनों की भिन्नता के कारण ही गुणों को सर्वथा नित्य नहीं माना जा सकता। इससे ज्ञात होता है कि गुण कथंचित् अनित्य भी हैं। इस प्रकार यद्यपि गुण कथंचित् नित्यानित्यात्मक सिद्ध होते हैं तथापि जो दर्शन कार्य-कारण में सर्वथा भेद मानते हैं वे गुणों को सर्वथा नित्य और पर्यायों को सर्वथा अनित्य मानते हैं, किन्तु उनकी यह मान्यता समीचीन नहीं है वास्तव द्रव्य - गुण - पर्याय सर्वथा पृथक्-पृथक् सिद्ध नहीं होते, कथंचित् भेदाभेदात्मक हैं। यदि भेदवादियों की दृष्टि से गुणों को सर्वथा नित्य और पर्यायों को सर्वथा अनित्य माना जाय तो अर्थ क्रिया कारित्व का विरोध आता है। जैनदर्शन के अनुसार गुण और पर्यायों से द्रव्य सर्वथा पृथक् नहीं है, किन्तु समुच्चय रूप से गुण और पर्यायों को ही द्रव्य माना गया है। गुण और पर्यायों से पृथक् द्रव्य नाम की कोई वस्तु नहीं है। इसलिए द्रव्य के नित्यानित्य सिद्ध होने पर अभिन्न गुण भी कथंचित् नित्यानित्य सिद्ध होते हैं ।
ऐसा सिद्धान्त होने पर भी न्याय-वैशेषिक दर्शन कुछ गुणों को सर्वथा नित्य • और कुछ गुणों को सर्वथा अनित्य मानता है। उसके मतानुसार कारण द्रव्य के गुण सर्वथा नित्य हैं और कार्य द्रव्य के गुण अनित्य हैं। अपनी मान्यता की पुष्टि में उनका कहना है कि कच्चे घड़े को अग्नि में पकाने पर उसके पहले के गुण नष्ट होकर नये गुण उत्पन्न होते है। वैशैषिक दर्शन तो इससे एक कदम और आगे बढ़कर यहाँ तक कहता है कि अग्नि में घड़े के पकाने पर अग्नि की ज्वालाओं के कारण अवयवों के संयोग का नाश हो जाने पर, असमवायी कारण के नाश से श्यामघट नष्ट हो जाता है। फिर परमाणुओं में रक्त रूप की उत्पत्ति होकर द्व्यणुक आदि के क्रम से लाल घड़े की उत्पत्ति होती है । पर विचार करने पर उनका यह सब कथन समीचीन प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि घड़े की कच्ची अवस्था बदल कर पक्की अवस्था के उत्पन्न होते समय यदि घड़े के मिट्टीपने का नाश माना गया होता तो कदाचित् उक्त कथन घटित होता, किन्तु जब पाक अवस्था में मिट्टी का नाश नहीं होता है तब मिट्टी में रहने वाले गुणों का नाश तो बन ही नहीं सकता है, क्योंकि किसी वस्तु का अपने गुणों को छोड़कर अन्य कोई दूसरा अस्तित्व नहीं
नयवाद की पृष्ठभूमि :: 63
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