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(2) मिश्री (3) मिर्च (4) खटाई-मिश्री (5) खटाई-मिर्च
(6) मिश्री-मिर्च .. (7) खटाई-मिश्री-मिर्च इसी प्रकार स्याद् अस्ति, स्यान्नास्ति और स्याद् अवक्तव्य इन तीन मूल भंगों के . तीन द्विसंयोगी भंग, स्याद् अस्ति-नास्ति, स्याद अस्ति-अवक्तव्य, स्यान्नास्तिअवक्तव्य और एक त्रिसंयोगी भंग, स्याद् अस्ति-नास्ति-अवक्तव्य । इस तरह कुल सात ही भंग होते है।
(1) स्यादस्त्येव (2) स्यान्नास्त्येव (3) स्यादवक्तव्यमेव (4) स्यादस्ति-नास्त्येव (5) स्यादस्त्यवक्तव्यमेव (6) स्यान्नास्त्यवक्तव्यमेव
(7) स्यादस्तिनास्त्यवक्तव्यमेव इसी प्रकार वस्तु के प्रत्येक धर्म की विवक्षा के सात-सात भंग बनकर वस्तु के अनन्त धर्मों की अनन्त सप्तभंगियाँ बन सकती हैं।
किसी भी वस्तु, पदार्थ या तत्त्व के लिए अपेक्षा के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए सात प्रकार से वचनों का प्रयोग किया जा सकता है। सात प्रकार से अधिक
और कम वचन प्रयोग सम्भव नहीं हैं; क्योंकि आठवें तरह का कोई-भंग ही नहीं बन सकता और सात से कम मानने में कोई-न-कोई वचन-भंग छूट जाएगा जिससे वस्तु-स्वरूप की सिद्धि में बाधा उपस्थित होगी। अतः वे वचन भंग सात प्रकार के ही हो सकते हैं। न कम और न अधिक; क्योंकि हीनाधिक भंग की प्रवृत्ति के निमित्त का अभाव है। एक धर्म के विधि-निषेध की विवक्षा से सात ही भंग होते हैं। इसका दूसरा समाधान यह भी है कि प्रतिपाद्य प्रश्न सात प्रकार के ही होते हैं
और प्रश्नों के वश से ही सप्तभंगी होती है-प्रश्न सात प्रकार के इसलिए होते हैं कि जिज्ञासा सात प्रकार की ही होती हैं। जिज्ञासा सात प्रकार की इसलिए होती हैं कि सन्देह सात प्रकार के ही होते हैं और सन्देह सात प्रकार के इसलिए होते हैं कि सन्देह की विषयभूत वस्तु के धर्म ही सात प्रकार के होते हैं। इस तरह भंग सात ही होते हैं, न्यूनाधिक नहीं 9 संगीत के स्वर भी स, रे, ग, म, प, ध, नी,
176 :: जैनदर्शन में नयवाद
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