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________________ कह सकता है कि 'एक दृष्टि से वह भी ठीक है, जो दूसरा कह रहा है; क्योंकि सत्य के सभी पक्ष सभी मनुष्यों को एक साथ दिखाई नहीं देते। जो वाद बिना दृष्टिकोण के हैं, स्याद्वाद उन्हें दृष्टि देता है कि तुम इस दृष्टिकोण को लेकर अपने वाद को सुरक्षित रखो, पर जो यह कहने के आदी हैं कि सभी प्रकार से केवल हमारा ही कहना यथार्थ है, स्याद्वाद उनके विरुद्ध खड़ा होता है और उनका निरसन किये बिना उसे चैन नहीं पड़ती है, इसलिए कि वे ठीक राह पर आ जाएँ और अपने आग्रह द्वारा जगत् में विभिन्न संघर्षों को उत्पन्न करने के कारण न बनें। इस विषय में एक लौकिक दृष्टान्त उपयोगी समझकर यहाँ दिया जाता है दो बुद्धिजीवी व्यक्ति नगर की पूर्व और पश्चिम दिशा से आ रहे थे। संयोगवश दोनों एक कुम्हार की दुकान पर रुके, एक मिट्टी के घड़े को खरीदने के विचार से। उनमें से एक ने सामने रखे हुए घड़े को देख कर कहा, ' क्या ही सुन्दर गोल घड़ा है!' तभी दूसरे ने भी कहा, 'अरे हाँ! बड़ा ही सुन्दर घड़ा है किन्तु थोड़ा चपटा है। पहले ने उसे फटकार कर कहा, 'शायद कम दिखता है तुम्हें; रे मूर्ख! यह घड़ा चपटा नहीं गोल है। तभी दूसरे ने क्रोध के आवेश में आँखें लाल करके कहा, 'अरे! मूर्ख तू है या मैं? देख, घड़ा चपटा है, गोल नहीं।' दोनों अपने-अपने कथन पर अड़े रहे और लगे लात-घूसों का प्रहार करने एक दूसरे पर तथा लड़ते-लड़ते घायल से होकर दोनों जमीन पर गिर पड़े। तभी एक समझदार व्यक्ति कुछ इकट्ठी हुई भीड़ को देखकर वहाँ पहुँचा और लगा पूछने उन दोनों से कुछ हमदर्दी के साथ, 'क्या बताएँगे कि आप दोनों लड़े क्यों?' तभी पहले ने कहा-'देखो। यह घड़ा गोल है और यह मूर्ख इसे चपटा बताता है।' दूसरे ने भी सम्हल कर कहा, 'झूठ। इधर देखो, यह घड़ा चपटा है और यह झूठा इसे गोल बताता है।' तभी उस समझदार व्यक्ति ने उस घड़े को पूरी तरह देखा और कहा'ओह ! तो आप दोनों इसलिए लड़ रहे थे, किन्तु आप दोनों ने इस घड़े को केवल अपनी-अपनी ओर से ही देखा है, यदि दोनों ओर से देखते तो शायद इतना लड़ने और विवाद करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती!' दोनों ने पूछा, 'आपके कहने का तात्पर्य ?' 'क्योंकि घड़ा एक ओर से गोल है और दूसरी ओर से चपटा है।' तब दोनों नागरिकों ने उस घड़े को पूरी तरह सावधानी से देखा तो वे अपनी हठता और शठता पर पश्चाताप करने लगे। झगड़े और विवाद की जड़ है किसी भी बात को केवल अपने दृष्टिकोण 164 :: जैनदर्शन में नयवाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004231
Book TitleJain Darshan me Nayvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhnandan Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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