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अनेकान्त और स्याद्वाद अनेकान्तवाद की अवधारणा अनेकान्तवाद जैनदर्शन का मौलिक व विशिष्ट सिद्धान्त है। जैनतत्त्वज्ञान की सारी इमारत अनेकान्तवाद के सिद्धान्त पर अवलम्बित है। वास्तव में इसे जैनदर्शन की मूलभित्ति समझना चाहिए। इसीलिए जैनदर्शन को अनेकान्तवादी दर्शन कहा जाता है। यह जैन परम्परा की एक विलक्षण सूझ है जो वास्तविक सत्य का साक्षात्कार करने में परम सहायक है। दार्शनिक जगत् को जैनदर्शन की यह एक मौलिक एवं असाधारण देन है। ___अनेकान्त की व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है कि 'जिसमें अनेक अन्त अर्थात् धर्म-सामान्य, विशेष, पर्याय, गुण, स्वभाव और अंश पाये जाते हैं उसे अनेकान्त कहते हैं ।44 'अनेकान्त' शब्द अनेक और अन्त, इन दो शब्दों से मिलकर बना है। 'अनेक' का अर्थ स्पष्ट है और 'अन्त' का अर्थ है अंश अथवा धर्म। अतः परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाले धर्मों का एक ही वस्तु में होने का नाम अनेकान्त है।
आचार्य अमृतचन्द्र ने भी अनेकान्त का यही स्वरूप बताया है-'जो वस्तु तत्स्वरूप है वही अतत्स्वरूप भी है, जो एक है वही अनेक भी है, जो सत् है वही असत् भी है, जो नित्य है वही अनित्य भी है।' इस प्रकार एक वस्तु में वस्तुत्व की उपजाने वाली परस्पर विरुद्ध दो शक्तियों का प्रकाशित होना अनेकान्त है ।245 अनेकान्त एक ही वस्तु में वस्तुत्व के कारणभूत परस्पर विरोधी अनेक धर्म-युगलों को प्रकाशित करता है। ___इसी प्रकार आचार्य विद्यानन्द ने भी कहा है-'वस्तु सर्वथा सत् ही है अथवा असत् ही है, नित्य ही है अथवा अनित्य ही है इत्यादि सर्वथा.एकान्तों का निरसन करके वस्तु का कथंचित् सत्, कथंचित् असत्, कथंचित् नित्य, कथंचित् अनित्य आदि रूप होना ही अनेकान्त है। 246
'अनेकान्त' शब्द एकान्तत्व, सर्वथात्व आदि एकान्त निश्चयों का निषेधक और विविधता का विधायक है। सर्वथा एक ही दृष्टि से पदार्थ के अवलोकन करने की पद्धति को अपूर्ण समझ कर ही जैनदर्शन में अनेकान्तवाद को मुख्य स्थान दिया गया है। अनेकान्त का अर्थ है वस्तु-स्वरूप का भिन्न-भिन्न दृष्टियों या अपेक्षाओं से पर्यालोचन करना। अर्थात् एक ही वस्तु में भिन्न-भिन्न वास्तविक धर्मों को सापेक्षतया स्वीकार करने का नाम अनेकान्त है अथवा जो वस्तु के अनन्त धर्मात्मक स्वरूप का प्रतिपादन मुख्य-गौणभाव से करता है वह अनेकान्तवाद है। जैसे एक ही पुरुष अपने विभिन्न सम्बन्धियों की अपेक्षा से पिता, पुत्र, भ्राता आदि संज्ञाओं
तत्त्वाधिगम के उपाय :: 151
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