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________________ जीव का ज्ञायक शरीर नोआगम द्रव्य निक्षेप कहते हैं। इस शरीर के भी तीन भेद हैं- 1. भूत, 2. भविष्यत् 3. वर्तमान । जिस शरीर को छोड़कर ज्ञाता आया है उसको भूत शरीर कहते हैं । जिस शरीर को ज्ञाता आगामी काल में धारण करेगा उसे भविष्यत् शरीर कहते है। ज्ञाता के वर्तमान शरीर को वर्तमान कहते हैं । भूत शरीर के भी तीन भेद हैं- 1. च्युत, 2. च्यावित, 3. त्यक्त । जो शरीर अपनी आयु को पूर्ण करके छूटता है उसको च्युत शरीर कहते हैं । विषभक्षण आदि निमित्तों से अकाल मृत्यु द्वारा जो शरीर छूटता है उसे च्यावित शरीर कहते हैं । जो शरीर संन्यासमरण में छूटता है उसे त्यक्त शरीर कहते हैं । (2) भावि नो आगम द्रव्य निक्षेप - भावि पर्याय को भावि नो आगम-द्रव्य निक्षेप कहते हैं । जैसे- भविष्य में राजा होने वाले को राजा कहना । (3) तद्व्यतिरिक्त के दो भेद हैं- 1. कर्म और 2. नोकर्म । कर्म के ज्ञानावरण आदि अनेक भेद हैं। जिस कर्म की जो अवस्था निक्षेप्यपदार्थ की उत्पत्ति के निमित्तभूत है उस ही अवस्था को प्राप्त वह कर्म निक्षेप्य पदार्थ का कर्म तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्य निक्षेप है। शरीर आदि के पोषक आहारादि रूप पुद्गल द्रव्य नो- कर्म तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्य निक्षेप है 1 230 4. भाव निक्षेप - केवल वर्तमान पर्याय की मुख्यता से जो पदार्थ जैसा है उसको उसी रूप में कहना भाव निक्षेप है ।231 जैसे- राज्य करते हुए व्यक्ति को राजा कहना अथवा मनुष्य-पर्याय युक्त जीव को मनुष्य कहना अथवा सम्यग्दर्शन से युक्त को सम्यग्दृष्टि कहना । यह भाव - निक्षेप भी अर्थात्मक व्यवहार का प्रयोजक है। भाव निक्षेप के दो भेद हैं- 1. आगम भाव निक्षेप, 2. नो आगम भाव निक्षेप 1232 आगम भाव निक्षेप - निक्षेप्य पदार्थ-स - स्वरूप - निरूपक शास्त्र के उपयोग विशिष्ट ज्ञाता जीव को आगम भाव निक्षेप कहते हैं । जैसे-‍ नोआगम भाव-निक्षेप–तत्पर्याययुक्त वस्तु का नोआगम भाव निक्षेप है। - मनुष्य पर्याय संयुक्त जीव मनुष्य का नोआगम भाव निक्षेप है। 233 (3) नय और निक्षेप - निक्षेप भाषा और भाव की संगति है । इसे समझे 148 :: जैनदर्शन में नयवाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004231
Book TitleJain Darshan me Nayvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhnandan Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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