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________________ आधार है। (4) जीवादि के साथ अभेद रूप जो सम्बन्ध अस्तित्व का है, वही सम्बन्ध . . अन्य धर्मों का भी है। यह सम्बन्ध से अभेद वृत्ति है। (5) अस्तित्व धर्म जीवादि का जो उपकार करता है-अपने से युक्त बनाता है, वही उपकार अन्य धर्म भी करते हैं, यह उपकार से अभेद वृत्ति है। (6) अस्तित्व धर्म जीवादि में जिस देश में रहता है उसी में अन्य धर्म भी रहते हैं, यह गुणिदेश से अभेद वृत्ति है। (7) अस्तित्व का जीवादि के साथ एक वस्तु रूप से जो संसर्ग है वही अन्य धर्मों का भी संसर्ग है, यह संसर्ग से अभेद-वृत्ति है। (8) 'अस्ति' यह शब्द अस्तित्व धर्मात्मक वस्तु का वाचक है वही अन्य अनन्तधर्मात्मक वस्तु का भी वाचक है, यह शब्द से अभेद-वृत्ति है। यह अभेद वृत्ति पर्यायार्थिक नय को गौण और द्रव्यार्थिक नय को मुख्य करने पर होती है। . किन्तु जब द्रव्यार्थिक नय गौण और पर्यायार्थिक नय मुख्य होता है तब अभेद वृत्ति सम्भव नहीं है। क्योंकि (1) एक ही काल में एक वस्तु में नाना गुण सम्भव नहीं है। अगर सम्भव हों तो उससे आधारभूत वस्तु में भी भेद हो जाएगा। , (2) नाना गुणों सम्बन्धी आत्मरूप भिन्न-भिन्न होता है। अगर भिन्न न हो तो गुणों में भेद नहीं हो सकता। . (3) नाना गुणों का आधारभूत पदार्थ भी नाना. रूप ही हो सकता है। वह नाना रूप न हो तो नानागुणों का आधार भी नहीं हो सकता। (4) सम्बन्धियों की भिन्न्ता से सम्बन्ध में भी भेद देखा जाता है। सम्बन्धी अनेक हों और उनका सम्बन्ध एकत्र और एक हो, यह नहीं हो सकता। (5) अनेक धर्मों के द्वारा किया जाने वाला उपकार अलग-अलग होने से अनेक रूप ही होता है, क्योंकि अनेक उपकारियों द्वारा किया जाने वाला उपकार एक नहीं हो सकता। ___(6) प्रत्येक गुण का गुणि देश पृथक्-पृथक् ही होता है। अगर अनेक गुणों का गुणिदेश अभिन्न माना जाये तो भिन्न-भिन्न पदार्थों के गुणिदेश में भी अभेद मानना पड़ेगा। ___(7) संसर्गी के भेद से संसर्ग में भी भेद होता है। संसर्ग में भेद न हो तो संसर्गियों (गुणों) में भी भेद नहीं हो सकता। (8) विषय के भेद से शब्द में भी भेद होता है। यदि समस्त गुण एक ही 126 :: जैनदर्शन में नयवाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004231
Book TitleJain Darshan me Nayvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhnandan Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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