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करने वाले नय के अनुसार द्रव्य के धर्मों में अभेद होता है और पर्यायार्थिक अर्थात् पर्याय या अवस्था ही जिसका प्रयोजन है अथवा केवल पर्याय या अवस्था को विषय करने वाले नय की दृष्टि से उनमें भेद होने पर भी अभेदोपचार किया जाता है। इन दो निमित्तों से वस्तु के अनन्त धर्मों को अभिन्न मानकर एक गुण की मुख्यता से जब अखण्ड वस्तु का प्रतिपादन विवक्षित हो, तब प्रमाण-वाक्य बनता है। जैनदर्शन में यह वाक्य सकलादेश कहा जाता है। इसलिए इसमें वस्तु को विभक्त करने वाले अन्य गुणों की विवक्षा नहीं होती।
वस्तु प्रतिपादन के दो प्रकार हैं-क्रम और यौगपद्य। इनके सिवाय तीसरा मार्ग नहीं है। इनका आधार है, भेद और अभेद की विवक्षा।69 यौगपद्य-पद्धति प्रमाण वाक्य है। भेद की विवक्षा में एक शब्द एक काल में एक धर्म का ही प्रतिपादन कर सकता है। यह अनुपचरित पद्धति है। यह क्रम की मर्यादा में परिर्वतन नहीं ला सकती, इसलिए इसे विकलादेश कहा जाता है, जो नयाधीन है। विकलादेश का अर्थ है, निरंश वस्तु में गुण-भेद से अंश की कल्पना करना। अखण्ड वस्तु में काल आदि की दृष्टि से विभिन्न अंशों की कल्पना करना अस्वाभाविक नहीं है। तात्पर्य यह है कि प्रमाण ज्ञात वस्तु-भाग द्वारा सकल वस्तु को ग्रहण करता है जब कि नय उसके विकल अर्थात् एक अंश को ग्रहण करता है। जैसे-आँख से घट के रूप को देखकर रूप मुखेन पूर्ण घट का ग्रहण करना 'सकलादेश' है और घट में 'रूप' है, इस रूपांश को जानना 'विकलादेश' है।
... आचार्य वीरसेन स्वामी ने सकलादेश और विकलादेश का विश्लेषण बड़े सुन्दर ढंग से किया है। उन्होंने सकलादेश का विवेचन करते हुए कहा है
'कथंचित् घट है, कथंचित् घट नहीं है, कथंचित् घट अवक्तव्य है, कथंचित् घट है और नहीं है, कथंचित् घट है और अवक्तव्य है, कथंचित् घट नहीं है और अवक्तव्य है, कथंचित् घट है, नहीं है और अवक्तव्य है, इस प्रकार ये सातों भंग सकलादेश कहे जाते हैं। क्योंकि ये सातों सुनय-वाक्य किसी एक धर्म को प्रधान करके साकल्यरूप से वस्तु का प्रतिपादन करते हैं, इसलिए ये सकलादेश रूप हैं, क्योंकि साकल्य रूप से जो पदार्थ का कथन करता है, वह सकलादेश कहा जाता
: इससे आगे उन्होंने विकलादेश के स्वरूप का कथन किया है___ 'घट है ही, घट नहीं ही है, घट अवक्तव्यरूप ही है, घट है ही और नहीं ही है, घट है ही और अवक्तव्य ही है, घट नहीं ही है और अवक्तव्य ही है, घट है ही, नहीं ही है और अवक्तव्य रूप ही है, इस प्रकार यह विकलादेश है। क्योंकि के सातों वाक्य एक-धर्म विशिष्ट वस्तु का ही प्रतिपादन करते हैं, इसलिए ये
तत्त्वाधिगम के उपाय :: 123
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