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मतिज्ञान के भेद इस प्रकार ऊपर सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के अन्तर्गत मतिज्ञान के भेद-प्रभेदों का वर्णन किया गया है। यदि इन भेद-प्रभेदों पर अलग-अलग रूप से विचार किया जावे तो ये सब भेद 336 होते है जैसे-यह बारह प्रकार के पदार्थों का ज्ञान अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा रूप होता है। अतः ये समस्त भेद मिलकर 12x4=48 होते हैं और इनमें प्रत्येक ज्ञान पाँच इन्द्रियों और मन के द्वारा होता है अतः 48x6=288 भेद हुए। ये 288 भेद अर्थावग्रह, ईहा, अवाय और धारणा के हैं। क्योंकि ये सभी पाँच इन्द्रिय और मन से होते हैं, किन्तु व्यंजनावग्रह चक्षु और मन से उत्पन्न नहीं होता, केवल चार इन्द्रियों से ही होता है, क्योंकि चक्षु और मन पदार्थ को दूर से ही ग्रहण करते हैं, उनसे सम्बद्ध या सटकर नहीं ग्रहण करते हैं। इस प्रकार व्यंजनावग्रह के बहु आदि बारह विषयों की अपेक्षा 12x4-48 भेद होते हैं। इन सबको मिलाने से 288+48=336 भेद मतिज्ञान के होते हैं अर्थात् मतिज्ञान 336 प्रकार से पदार्थों को ग्रहण करता है, उनको जानता है।
__ मतिज्ञान के इन 336 भेदों को उक्त तालिका द्वारा प्रदर्शित किया है। परस्पर की भेद-विवक्षा
(क) बहु और बहुविध में भेद-89 बहुत व्यक्तियों के जानने को बहज्ञान कहते हैं। जैसे बहुत-सी गायों को जानना, गेहूँ या चनों की राशि को देखने से बहुत से गेहुँओं का ज्ञान होना और बहुत जातियों के जानने को बहुविध ज्ञान कहते हैं। जैसे-खण्डी, मुण्डी, साँवली आदि अनेक जातियों की गायों को जानना। इसी प्रकार गेहूँ, चना, चावल आदि कई जाति के अनाजों का ज्ञान होना।
(ख) एक और एकविध में अन्तर – एक व्यक्ति को जानना एक ज्ञान है। जैसे—यह गौ है। इसी प्रकार एक गेहूँ या एक चने का ज्ञान होना। और एक जाति को जानना एकविध है। जैसे—यह खण्डी गौ है या एक सदृश गेहूँओं का ज्ञान होना। इसी को आचार्य वीरसेन स्वामी ने अपने शब्दों में कहा है-'एकप्रत्यय व्यक्तिगत एकता में सम्बद्ध रहने वाला है और एकविध अनेक व्यक्तियों में सम्बद्ध एकजाति में रहने वाला है' अर्थात् एक व्यक्तिरूप पदार्थ का ग्रहण करना एक अंवग्रह है और एक जाति में स्थिति एक पदार्थ का अथवा बहुत पदार्थों की एक जाति का ग्रहण करना एकविध अवग्रह है।
(ग) क्षिप्र और अक्षिप्र में भेद-आशु अर्थात् शीघ्रतापूर्वक वस्तु को ग्रहण करना क्षिप्र अवग्रह है। जैसे-तेजी से बहते हुए जलप्रवाह का ज्ञान होना और नवीन सकोरे में रहने वाले जल के समान धीरे-धीरे वस्तु को ग्रहण करने वाला अक्षिप्र अवग्रह है।
तत्त्वाधिगम के उपाय :: 103
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