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________________ आकृति तथा हाथ आदि के इशारे से प्यासे या भूखे मनुष्य का ज्ञान होना। 6. ध्रुव-स्थिर पदार्थ को ध्रुव कहते है। जैसे पर्वतादि अथवा बहुत काल तक जैसे का तैसा निश्चल ज्ञान होते रहना। 7. एक-अल्प अथवा एक पदार्थ का ज्ञान। जैसे-एक गेहूँ या एक चने का ज्ञान होना। 8. एकवधि-एक प्रकार के या एक ही जाति के पदार्थों का ज्ञान होना जैसे-एक सदृश गेहुँओं का ज्ञान होना। 9. अक्षिप्र-चिरग्रहण-किसी पदार्थ को धीरे-धीरे बहुत समय तक जानना अथवा मन्द पदार्थ को अक्षिप्र कहते हैं। जैसे-कछुआ, धीरे धीरे चलने वाला घोड़ा, मनुष्यादि। 10. निःसृत-बाहर निकले हुए प्रकट पदार्थों का ज्ञान होना। 11. उक्त-कहने पर ज्ञान होना। 12. अध्रुव-जो क्षण-क्षण हीन अधिक होता रहे उसे अध्रुव ज्ञान कहते हैं अथवा चंचल रूप में पदार्थों को जानना अध्रुव ज्ञान है। जैसे विद्युत आदि का ज्ञान। उक्त बारह प्रकार के विषयों का पाँच इन्द्रिय और मन से अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा रूप ज्ञान होता है तथा ऊपर कहे हुए बहु आदिक बारह भेद पदार्थ के हैं। अर्थात् बहु आदि विशेषण विशिष्ट पदार्थ के ही अवग्रह आदि ज्ञान होते हैं। - इस विषय में वैशेषिकादि दर्शनों का मत है कि चक्षु आदि इन्द्रियाँ पदार्थों के केवल रूपादि गुणों को ही ग्रहण करती हैं, पदार्थों को नहीं, क्योंकि इन्द्रियों का सन्निकर्ष रूंपादि गुणों के साथ ही होता है, अतः वे उन्हीं को ग्रहण करती हैं, किन्तु जैनदर्शन इस मान्यता से सहमत नहीं है। उसके अनुसार चक्षु आदि इन्द्रियों का सम्बन्ध पदार्थों के साथ ही होता है, केवल रूपादि गुणों के साथ नहीं होता, अत: चक्षु आदि इन्द्रियों के द्वारा होने वाले अवग्रहादि मात्र रूपादि गुणों को ही नहीं जानते, किन्तु उन गुणों के द्वारा द्रव्य को ग्रहण करते हैं, क्योंकि गुण और गुणी (द्रव्य) में कथंचित् अभेद होने से गुण का ग्रहण होने पर गुणी (द्रव्य) का भी ग्रहण उस रूप में ही हो जाता है। किसी ऐसे इन्द्रिय-ज्ञान की कल्पना नहीं की जा सकती, जो द्रव्य को छोड़कर मात्र गुण को या गुण को छोड़कर मात्र द्रव्य को ग्रहण करता हो। तत्त्वाधिगम के उपाय :: 101 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004231
Book TitleJain Darshan me Nayvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhnandan Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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