SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देश को स्पर्श करता है। नयवाद की जितनी उपयोगिता सैद्धान्तिक दृष्टि से है उतनी ही व्यावहारिक दृष्टि से भी। वस्तु स्वरूप का विवेचन करते समय नय की अपेक्षा कथन किया जाता है, इसी प्रकार व्यवहार में जो भी शब्द प्रयुक्त होता है, वह नय की अपेक्षा से होता है। व्यवहार का सम्पूर्ण सत्य इसी के अन्तर्गत आता है। प्रमाण और नय के साथ निक्षेप का विवेचन आता है। प्रमाण और नय के द्वारा प्रचलित लोक व्यवहार 'निक्षेप' कहलाता है। इस दृष्टि से नय के . विवेचन में निक्षेप का विवेचन समाहित रहता है। नयवाद का विवेचन जैनदर्शन का ऐसा अनिवार्य अंग है कि जैन वाङ्मय में आगम साहित्य से लेकर आधुनिकतम साहित्य में इसका प्रतिपादन किया गया है। भारतीय दर्शन के क्षेत्र में नयवाद जैनाचार्यों की एक मौलिक देन है। वस्तुतः आज इस बात की आवश्यकता है कि सम्पूर्ण जैन वाङ्मय के . आलोक में तथा अन्य भारतीय दर्शनों की तुलना में नयवाद का एक ऐसा समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाए, जो दर्शन के क्षेत्र में नवीन तथ्यों के उद्घाटन के साथ-साथ अपनी उपयोगिता और महत्त्व का उद्घोषक हो। प्रस्तुत ग्रन्थ इसी उद्देश्य पूर्ति की दिशा में किया गया एक लघु प्रयास है। इस ग्रन्थ में कुल पाँच अध्याय हैं, जिनमें जैन वाङ्मय में विवेचित तत्त्वाधिगम के अन्यतम उपाय 'नय' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रमाण के साथ उसके अन्तर को विशद रूप से निरूपित करने का प्रयास किया गया है। साथ ही नयों के समन्वयवादी, सैद्धान्तिक तथा आध्यात्मिक दृष्टिकोणों पर पर्याप्त प्रकाश डालते हुए उनके भेद-प्रभेदों को भी एक सीमा में प्रस्तुत करने की चेष्टा की गयी है। संक्षेप में प्रस्तुत ग्रन्थ में विवेचित विभिन्न विषयों को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है___ प्रथम, 'नयवाद की पृष्ठभूमि' में नय परिचय, नयों की उपयोगिता, जैन दर्शन में वस्तु व्यवस्था-सत्, द्रव्य, गुण और पर्याय का उनके भेदप्रभेदों सहित विवेचन किया गया है। आठ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004231
Book TitleJain Darshan me Nayvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhnandan Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy