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श्री अढार अभिषेक विधि
मुक्तिश्रीरसिकस्य यस्य सुरस-स्नात्रेण किं तस्य च,
श्रीपाद-द्वय-भक्ति-भावित-धिया, कुर्मः प्रभोस्तत्पुनः ।।२।। ॐ हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हः परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्रकश्मीरज-शर्करा-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा।
इति पंचदश स्नात्रम् ।। |पंदर स्नात्र थया पछी चंद्र-सूर्य दर्शननुं विशेष विधान करवानुं छे. आ विधान खास करीने अंजनशलाका प्रसंगे कराववामां आवे छे. सामान्य अढार अभिषेक प्रसंगे कराववा माटे जेवी अनुकूळता होय तेम कर. चंद्रदर्शन, सूर्यदर्शन अने षष्ठी जागरण ते आ प्रमाणे छे. प्रथमदिन कुलस्थिति, पछी त्रीजे दिवसे चंद्र-सूर्यदर्शन. तेमां सर्व बिंबोने चंद्र अने सूर्यनां स्वप्ननुं दर्शन नीचेना मंत्रपाठ पूर्वक सौभाग्यवती बहेनो पासे कराव, स्वप्न न होय तो दर्पण देखाड. चंद्रदर्शन मंत्र आ प्रमाणे छे. ॐ अहँ चन्द्रोऽसि, निशाकरोऽसि, सुधाकरोऽसि, चन्द्रमा असि, ग्रहपतिरसि, नक्षत्रपतिरसि, कौमुदीपतिरसी, मदनमित्रमसि, जगज्जीवनमसि, जैवातृकोऽसि, क्षीरसागरोद्भवोऽसि, श्वेतवाहनोऽसि, राजाऽसि, राजराजोऽसि; औषधिगर्भोऽसि, वन्द्योऽसि, पूज्योऽसि, नमस्ते भगवन्! अस्य कुलस्य ऋद्धिं कुरु कुरु, वृद्धिं कुरु कुरु, तुष्टिं कुरु कुरु, पुष्टिं कुरु कुरु, जयं कुरु कुरु, विजयं कुरु कुरु, भद्रं कुरु कुरु, प्रमोदं कुरु कुरु, श्रीशशाङ्काय नमः। ॐ अर्हम्। सर्वोषधिमिश्रमरीचिजालः सर्वापदां संहरणप्रवीणः । - करोतु वृद्धिं सकलेऽपि वंशें, युष्माकमिन्दुः सततं प्रसन्नः ।।१।।
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